शनिवार, 23 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

नामकरण-संस्कार और बाललीला

एकदा क्रीडमानास्ते रामाद्या गोपदारकाः ।
कृष्णो मृदं भक्षितवान् इति मात्रे न्यवेदयन् ॥ ३२ ॥
सा गृहीत्वा करे कृष्णं उपालभ्य हितैषिणी ।
यशोदा भयसंभ्रान्त प्रेक्षणाक्षमभाषत ॥ ३३ ॥
कस्मान् मृदमदान्तात्मन् भवान् भक्षितवान् रहः ।
वदन्ति तावका ह्येते कुमारास्तेऽग्रजोऽप्ययम् ॥ ३४ ॥
नाहं भक्षितवान् अंब सर्वे मिथ्याभिशंसिनः ।
यदि सत्यगिरस्तर्हि समक्षं पश्य मे मुखम् ॥ ३५ ॥
यद्येवं तर्हि व्यादेही इत्युक्तः स भगवान् हरिः ।
व्यादत्ताव्याहतैश्वर्यः क्रीडामनुजबालकः ॥ ३६ ॥
सा तत्र ददृशे विश्वं जगत् स्थास्नु च खं दिशः ।
साद्रि-द्वीपाब्धि-भूगोलं सवाय्वग्नीन्दुतारकम् ॥ ३७ ॥
ज्योतिश्चक्रं जलं तेजो नभस्वान् वियदेव च ।
वैकारिकाणीन्द्रियाणि मनो मात्रा गुणास्त्रयः ॥ ३८ ॥

एक दिन बलराम आदि ग्वालबाल श्रीकृष्ण के साथ खेल रहे थे । उन लोगोंने मा यशोदाके पास आकर कहा—‘मा ! कन्हैयाने मिट्टी खायी है॥ ३२ ॥ हितैषिणी यशोदाने श्रीकृष्णका हाथ पकड़ लिया। उस समय श्रीकृष्णकी आँखें डरके मारे नाच रही थीं। यशोदा मैयाने डाँटकर कहा॥ ३३ ॥ क्यों रे नटखट ! तू बहुत ढीठ हो गया है । तूने अकेलेमें छिपकर मिट्टी क्यों खायी ? देख तो तेरे दलके तेरे सखा क्या कह रहे हैं ! तेरे बड़े भैया बलदाऊ भी तो उन्हींकी ओर से गवाही दे रहे हैं॥ । ३४ ॥
भगवान्‌ श्रीकृष्णने कहा—‘मा ! मैंने मिट्टी नहीं खायी । ये सब झूठ बक रहे हैं । यदि तुम इन्हींकी बात सच मानती हो तो मेरा मुँह तुम्हारे सामने ही है, तुम अपनी आँखोंसे देख लो ॥ ३५ ॥ यशोदाजीने कहा—‘अच्छी बात । यदि ऐसा है, तो मुँह खोल ।माताके ऐसा कहनेपर भगवान्‌ श्रीकृष्णने अपना मुँह खोल दिया। परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ श्रीकृष्णका ऐश्वर्य अनन्त है । वे केवल लीलाके लिये ही मनुष्यके बालक बने हुए हैं ॥ ३६ ॥ यशोदाजीने देखा कि उनके मुँहमें चर-अचर सम्पूर्ण जगत् विद्यमान है । आकाश (वह शून्य जिसमें किसीकी गति नहीं) दिशाएँ, पहाड़, द्वीप, और समुद्रोंके सहित सारी पृथ्वी, बहनेवाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज, पवन, वियत् (प्राणियों के चलने-फिरने का आकाश), वैकारिक अहंकारके कार्य देवता, मन-इन्द्रिय, पञ्चतन्मात्राएँ और तीनों गुण श्रीकृष्ण के मुखमें दीख पड़े ॥ ३७-३८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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