मंगलवार, 26 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) नवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

श्रीकृष्ण का ऊखल से बाँधा जाना

अन्वञ्चमाना जननी बृहच्चलत्
श्रोणीभराक्रान्तगतिः सुमध्यमा ।
जवेन विस्रंसितकेशबन्धन
च्युतप्रसूनानुगतिः परामृशत् ॥ १० ॥
कृतागसं तं प्ररुदन्तमक्षिणी
कर्षन्तमञ्जन्मषिणी स्वपाणिना ।
उद्वीक्षमाणं भयविह्वलेक्षणं
हस्ते गृहीत्वा भिषयन्त्यवागुरत् ॥ ११ ॥
त्यक्त्वा यष्टिं सुतं भीतं विज्ञायार्भकवत्सला ।
इयेष किल तं बद्धुं दाम्नातद्‌वीर्यकोविदा ॥ १२ ॥

जब इस प्रकार माता यशोदा श्रीकृष्ण के पीछे दौडऩे लगीं तब कुछ ही देर में बड़े-बड़े एवं हिलते हुए नितम्बों के कारण उनकी चाल धीमी पड़ गयी । वेग से दौडऩे के कारण चोटी की गाँठ ढीली पड़ गयी । वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़तीं, पीछे-पीछे चोटी में गुँथे हुए फूल गिरते जाते । इस प्रकार सुन्दरी यशोदा ज्यों-त्यों करके उन्हें पकड़ सकीं[10] ॥ १० ॥ श्रीकृष्ण का हाथ पकडक़र वे उन्हें डराने-धमकाने लगीं । उस समय श्रीकृष्णकी झाँकी बड़ी विलक्षण हो रही थी । अपराध तो किया ही था, इसलिये रुलाई रोकनेपर भी न रुकती थी । हाथोंसे आँखें मल रहे थे, इसलिये मुँहपर काजलकी स्याही फैल गयी थी, पिटनेके भयसे आँखें ऊपरकी ओर उठ गयी थीं, उनसे व्याकुलता सूचित होती थी[11] ॥ ११ ॥ जब यशोदाजीने देखा कि लल्ला बहुत डर गया है, तब उनके हृदयमें वात्सल्य-स्नेह उमड़ आया । उन्होंने छड़ी फेंक दी । इसके बाद सोचा कि इसको एक बार रस्सीसे बाँध देना चाहिये (नहीं तो यह कहीं भाग जायगा) । परीक्षित्‌ ! सच पूछो तो यशोदा मैयाको अपने बालकके ऐश्वर्यका पता न था[12] ॥ १२ ॥
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[10] माता यशोदाके शरीर और सृंगार दोनों ही विरोधी हो गयेतुम प्यारे कन्हैयाको क्यों खदेड़ रही हो । परंतु मैया ने पकडक़र ही छोड़ा ।

[11] विश्वके इतिहासमें, भगवान्‌ के सम्पूर्ण जीवनमें पहली बार स्वयं विश्वेश्वरभगवान्‌ मा के सामने अपराधी बनकर खड़े हुए हैं । मानो अपराधी भी मैं ही हूँइस सत्यका प्रत्यक्ष करा दिया । बायें हाथसे दोनों आँखें रगड़-रगडक़र मानो उनसे कहलाना चाहते हों कि ये किसी कर्मके कर्ता नहीं हैं । ऊपर इसलिये देख रहे हैं कि जब माता ही पीटनेके लिये तैयार है, तब मेरी सहायता और कौन कर सकता है ? नेत्र भयसे विह्वल हो रहे हैं, ये भले ही कह दें कि मैंने नहीं किया, हम कैसे कहें । फिर तो लीला ही बंद हो जायगी ।

मा ने डाँटाअरे, अशान्तप्रकृते ! वानरबन्धो ! मन्थनीस्फोटक ! अब तुझे मक्खन कहाँसे मिलेगा ? आज मैं तुझे ऐसा बाँधूँगी, ऐसा बाँधूँगी कि न तो तू ग्वालबालोंके साथ खेल ही सकेगा और न माखन-चोरी आदि ऊधम ही मचा सकेगा ।

[12] अरी मैया ! मोहि मत मार ।माताने कहा—‘यदि तुझे पिटनेका इतना डर था तो मटका क्यों फोड़ा ?’ श्रीकृष्ण—‘अरी मैया ! मैं अब ऐसा कभी नहीं करूँगा । तू अपने हाथसे छड़ी डाल दे ।

श्रीकृष्णका भोलापन देखकर मैयाका हृदय भर आया, वात्सल्य-स्नेहके समुद्रमें ज्वार आ गया । वे सोचने लगींलाला अत्यन्त डर गया है । कहीं छोडऩेपर यह भागकर वनमें चला गया तो कहाँ-कहाँ भटकता फिरेगा, भूखा-प्यासा रहेगा । इसलिये थोड़ी देरतक बाँधकर रख लूँ । दूध-माखन तैयार होनेपर मना लूँगी । यही सोच-विचारकर माताने बाँधनेका निश्चय किया । बाँधनेमें वात्सल्य ही हेतु था ।

भगवान्‌ के ऐश्वर्यका अज्ञान दो प्रकार का होता है, एक तो साधारण प्राकृत जीवों को और दूसरा भगवान्‌ के नित्यसिद्ध प्रेमी परिकर को । यशोदा मैया आदि भगवान्‌ की स्वरूपभूता चिन्मयी लीला के अप्राकृत नित्य-सिद्ध परिकर हैं । भगवान्‌ के प्रति वात्सल्यभाव, शिशु-प्रेमकी गाढ़ताके कारण ही उनका ऐश्वर्य-ज्ञान अभिभूत हो जाता है; अन्यथा उनमें अज्ञानकी संभावना ही नहीं है । इनकी स्थिति तुरीयावस्था अथवा समाधि का भी अतिक्रमण करके सहज प्रेममें रहती है । वहाँ प्राकृत अज्ञान, मोह, रजोगुण और तमोगुणकी तो बात ही क्या, प्राकृत सत्त्वकी भी गति नहीं है । इसलिये इनका अज्ञान भी भगवान्‌की लीलाकी सिद्धिके लिये उनकी लीलाशक्तिका ही एक चमत्कार विशेष है ।

तभीतक हृदयमें जड़ता रहती है, जबतक चेतनका स्फुरण नहीं होता । श्रीकृष्ण के हाथमें आ जानेपर यशोदा माताने बाँसकी छड़ी फेंक दीयह सर्वथा स्वाभाविक है ।

मेरी तृप्ति का प्रयत्न छोडक़र छोटी-मोटी वस्तुपर दृष्टि डालना केवल अर्थ-हानिका ही हेतु नहीं है, मुझे भी आँखोंसे ओझल कर देता है । परंतु सब कुछ छोडक़र मेरे पीछे दौडऩा मेरी प्राप्तिका हेतु है । क्या मैयाके चरितसे इस बातकी शिक्षा नहीं मिलती ?

मुझे योगियोंकी भी बुद्धि नहीं पकड़ सकती, परंतु जो सब ओरसे मुँह मोडक़र मेरी ओर दौड़ता है, मैं उसकी मुट्ठी में आ जाता हूँ । यही सोचकर भगवान्‌ यशोदा के हाथों पकड़े गये ।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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