रविवार, 24 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट११)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) आठवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

नामकरण-संस्कार और बाललीला

श्रीराजोवाच ।
नन्दः किमकरोद् ब्रह्मन् श्रेय एवं महोदयम् ।
यशोदा च महाभागा पपौ यस्याः स्तनं हरिः ॥ ४६ ॥
पितरौ नान्वविन्देतां कृष्णोदारार्भकेहितम् ।
गायन्त्यद्यापि कवयो यल्लोकशमलापहम् ॥ ४७ ॥

श्रीशुक उवाच ।
द्रोणो वसूनां प्रवरो धरया भार्यया सह ।
करिष्यमाण आदेशान् ब्रह्मणस्तमुवाच ह ॥ ४८ ॥
जातयोर्नौ महादेवे भुवि विश्वेश्वरे हरौ ।
भक्तिः स्यात्परमा लोके ययाञ्जो दुर्गतिं तरेत् ॥ ४९ ॥
अस्त्वित्युक्तः स भगवान् व्रजे द्रोणो महायशाः ।
जज्ञे नन्द इति ख्यातो यशोदा सा धराभवत् ॥ ५० ॥
ततो भक्तिर्भगवति पुत्रीभूते जनार्दने ।
दम्पत्योर्नितरामासीत् गोपगोपीषु भारत ॥ ५१ ॥
कृष्णो ब्रह्मण आदेशं सत्यं कर्तुं व्रजे विभुः ।
सहरामो वसंश्चक्रे तेषां प्रीतिं स्वलीलया ॥ ५२ ॥

राजा परीक्षित्‌ने पूछाभगवन् ! नन्दबाबा ने ऐसा कौन-सा बहुत बड़ा मङ्गलमय साधन किया था ? और परमभाग्यवती यशोदाजीने भी ऐसी कौन-सी तपस्या की थी जिसके कारण स्वयं भगवान्‌ ने अपने श्रीमुख से उनका स्तनपान किया ॥ ४६ ॥ भगवान्‌ श्रीकृष्णकी वे बाललीलाएँ, जो वे अपने ऐश्वर्य और महत्ता आदिको छिपाकर ग्वालबालोंमें करते हैं, इतनी पवित्र हैं कि उनका श्रवण-कीर्तन करनेवाले लोगोंके भी सारे पाप-ताप शान्त हो जाते हैं । त्रिकालदर्शी ज्ञानी पुरुष आज भी उनका गान करते रहते हैं । वे ही लीलाएँ उनके जन्मदाता माता-पिता देवकी- वसुदेवजीको तो देखनेतकको न मिलीं और नन्द-यशोदा उनका अपार सुख लूट रहे हैं । इसका क्या कारण है ? ॥ ४७ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहापरीक्षित्‌ ! नन्दबाबा पूर्वजन्ममें एक श्रेष्ठ वसु थे । उनका नाम था द्रोण और उनकी पत्नीका नाम था धरा । उन्होंने ब्रह्माजीके आदेशोंका पालन करनेकी इच्छासे उनसे कहा॥ ४८ ॥ भगवन् ! जब हम पृथ्वीपर जन्म लें, तब जगदीश्वर भगवान्‌ श्रीकृष्णमें हमारी अनन्य प्रेममयी भक्ति होजिस भक्तिके द्वारा संसारमें लोग अनायास ही दुर्गतियोंको पार कर जाते हैं॥ ४९ ॥ ब्रह्माजीने कहा—‘ऐसा ही होगा ।वे ही परमयशस्वी भगवन्मय द्रोण व्रजमें पैदा हुए और उनका नाम हुआ नन्द । और वे ही धरा इस जन्ममें यशोदाके नामसे उनकी पत्नी हुर्ईं ॥ ५० ॥ परीक्षित्‌ ! अब इस जन्ममें जन्म-मृत्युके चक्रसे छुड़ानेवाले भगवान्‌ उनके पुत्र हुए और समस्त गोप-गोपियोंकी अपेक्षा इन पति-पत्नी नन्द और यशोदाजीका उनके प्रति अत्यन्त प्रेम हुआ ॥ ५१ ॥ ब्रह्माजीकी बात सत्य करनेके लिये भगवान्‌ श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ व्रजमें रहकर समस्त व्रजवासियोंको अपनी बाल-लीलासे आनन्दित करने लगे ॥ ५२ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से






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