॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
शकट-भञ्जन
और तृणावर्त-उद्धार
रुदन्तं
सुतमादाय यशोदा ग्रहशङ्किता
कृतस्वस्त्ययनं
विप्रैः सूक्तैः स्तनमपाययत् ॥ ११ ॥
पूर्ववत्स्थापितं
गोपैर्बलिभिः सपरिच्छदम्
विप्रा
हुत्वार्चयां चक्रुर्दध्यक्षतकुशाम्बुभिः ॥ १२ ॥
येऽसूयानृतदम्भेर्षा
हिंसामानविवर्जिताः
न
तेषां सत्यशीलानामाशिषो विफलाः कृताः ॥ १३ ॥
इति
बालकमादाय सामर्ग्यजुरुपाकृतैः
जलैः
पवित्रौषधिभिरभिषिच्य द्विजोत्तमैः ॥ १४ ॥
वाचयित्वा
स्वस्त्ययनं नन्दगोपः समाहितः
हुत्वा
चाग्निं द्विजातिभ्यः प्रादादन्नं महागुणम् ॥ १५ ॥
गावः
सर्वगुणोपेता वासःस्रग्रुक्ममालिनीः
आत्मजाभ्युदयार्थाय
प्रादात्ते चान्वयुञ्जत ॥ १६ ॥
विप्रा
मन्त्रविदो युक्तास्तैर्याः प्रोक्तास्तथाशिषः
ता
निष्फला भविष्यन्ति न कदाचिदपि स्फुटम् ॥ १७ ॥
यशोदाजीने
समझा यह किसी ग्रह आदिका उत्पात है । उन्होंने अपने रोते हुए लाड़ले लाल को गोदमें
लेकर,
ब्राह्मणोंसे वेदमन्त्रोंके द्वारा शान्तिपाठ कराया और फिर वे उसे
स्तन पिलाने लगीं ॥ ११ ॥ बलवान् गोपोंने छकड़ेको फिर सीधा कर दिया । उसपर पहलेकी
तरह सारी सामग्री रख दी गयी । ब्राह्मणोंने हवन किया और दही अक्षत, कुश तथा जलके द्वारा भगवान् और उस छकड़ेकी पूजा की ॥ १२ ॥ जो किसीके
गुणोंमें दोष नहीं निकालते, झूठ नहीं बोलते, दम्भ, ईष्र्या और हिंसा नहीं करते तथा अभिमानसे रहित
हैं—उन सत्यशील ब्राह्मणोंका आशीर्वाद कभी विफल नहीं होता ॥
१३ ॥ यह सोचकर नन्दबाबाने बालकको गोदमें उठा लिया और ब्राह्मणोंसे साम, ऋक् और यजुर्वेद के मन्त्रों द्वारा संस्कृत एवं पवित्र ओषधियोंसे युक्त
जलसे अभिषेक कराया ॥ १४ ॥ उन्होंने बड़ी एकाग्रता से स्वस्त्ययनपाठ और हवन कराकर
ब्राह्मणोंको अति उत्तम अन्नका भोजन कराया ॥ १५ ॥ इसके बाद नन्दबाबाने अपने
पुत्रकी उन्नति और अभिवृद्धिकी कामनासे ब्राह्मणोंको सर्वगुणसम्पन्न बहुत-सी गौएँ
दीं । वे गौएँ वस्त्र, पुष्पमाला और सोनेके हारोंसे सजी हुई
थीं । ब्राह्मणोंने उन्हें आशीर्वाद दिया ॥ १६ ॥ यह बात स्पष्ट है कि जो वेदवेत्ता
और सदाचारी ब्राह्मण होते हैं, उनका आशीर्वाद कभी निष्फल
नहीं होता ॥ १७ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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