सोमवार, 1 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

गोकुलसे वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार

तच्छ्रुत्वैकधियो गोपाः साधु साध्विति वादिनः ।
व्रजान् स्वान् स्वान् समायुज्य ययू रूढपरिच्छदाः ॥ ३० ॥
वृद्धान् बालान् स्त्रियो राजन् सर्वोपकरणानि च ।
अनःस्वारोप्य गोपाला यत्ता आत्त-शरासनाः ॥ ३१ ॥
गोधनानि पुरस्कृत्य शृङ्‌गाण्यापूर्य सर्वतः ।
तूर्यघोषेण महता ययुः सहपुरोहिताः ॥ ३२ ॥
गोप्यो रूढरथा नूत्‍न कुचकुंकुम कान्तयः ।
कृष्णलीला जगुः प्रीत्या निष्ककण्ठ्यः सुवाससः ॥ ३३ ॥
तथा यशोदारोहिण्यौ एकं शकटमास्थिते ।
रेजतुः कृष्णरामाभ्यां तत्कथाश्रवणोत्सुके ॥ ३४ ॥
वृन्दावनं सम्प्रविश्य सर्वकालसुखावहम् ।
तत्र चक्रुर्व्रजावासं शकटैः अर्धचन्द्रवत् ॥ ३५ ॥
वृन्दावनं गोवर्धनं यमुनापुलिनानि च ।
वीक्ष्यासीत् उत्तमा प्रीती राममाधवयोर्नृप ॥ ३६ ॥
एवं व्रजौकसां प्रीतिं यच्छन्तौ बालचेष्टितैः ।
कलवाक्यैः स्वकालेन वत्सपालौ बभूवतुः ॥ ३७ ॥
अविदूरे व्रजभुवः सह गोपालदारकैः ।
चारयामासतुः वत्सान् नानाक्रीडापरिच्छदौ ॥ ३८ ॥
क्वचिद् वादयतो वेणुं क्षेपणैः क्षिपतः क्वचित् ।
क्वचित् पादैः किङ्‌किणीभिः क्वचित् कृत्रिमगोवृषैः ॥ ३९ ॥
वृषायमाणौ नर्दन्तौ युयुधाते परस्परम् ।
अनुकृत्य रुतैर्जन्तून् चेरतुः प्राकृतौ यथा ॥ ४० ॥

उपनन्दकी बात सुनकर सभी गोपोंने एक स्वरसे कहा—‘बहुत ठीक, बहुत ठीक ।इस विषयमें किसीका भी मतभेद न था । सब लोगोंने अपनी झुंड-की-झुंड गायें इक_ी कीं और छकड़ोंपर घरकी सब सामग्री लादकर वृन्दावनकी यात्रा की ॥ ३० ॥ परीक्षित्‌ ! ग्वालोंने बूढ़ों, बच्चों, स्त्रियों और सब सामग्रियोंको छकड़ोंपर चढ़ा दिया और स्वयं उनके पीछे-पीछे धनुष-बाण लेकर बड़ी सावधानीसे चलने लगे ॥ ३१ ॥ उन्होंने गौ और बछड़ोंको तो सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे-पीछे सिंगी और तुरही जोर-जोरसे बजाते हुए चले । उनके साथ ही-साथ पुरोहित- लोग भी चल रहे थे ॥ ३२ ॥ गोपियाँ अपने-अपने वक्ष:स्थलपर नयी केसर लगाकर, सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनकर, गलेमें सोनेके हार धारण किये हुए रथोंपर सवार थीं और बड़े आनन्दसे भगवान्‌ श्रीकृष्णकी लीलाओंके गीत गाती जाती थीं ॥ ३३ ॥ यशोदारानी और रोहिणीजी भी वैसे ही सज-धजकर अपने-अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण तथा बलरामके साथ एक छकड़ेपर शोभायमान हो रही थीं । वे अपने दोनों बालकोंकी तोतली बोली सुन-सुनकर भी अघाती न थीं, और-और सुनना चाहती थीं ॥ ३४ ॥ वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन है । चाहे कोई भी ऋतु हो, वहाँ सुख-ही-सुख है । उसमें प्रवेश करके ग्वालोंने अपने छकड़ोंको अद्र्धचन्द्राकार मण्डल बाँधकर खड़ा कर दिया और अपने गोधनके रहनेयोग्य स्थान बना लिया ॥ ३५ ॥ परीक्षित्‌ ! वृन्दावनका हरा-भरा वन, अत्यन्त मनोहर गोवर्धन पर्वत और यमुना नदीके सुन्दर-सुन्दर पुलिनोंको देखकर भगवान्‌ श्रीकृष्ण और बलरामजीके हृदयमें उत्तम प्रीतिका उदय हुआ ॥ ३६ ॥
राम और श्याम दोनों ही अपनी तोतली बोली और अत्यन्त मधुर बालोचित लीलाओंसे गोकुलकी ही तरह वृन्दावनमें भी व्रजवासियोंको आनन्द देते रहे । थोड़े ही दिनोंमें समय आनेपर वे बछड़े चराने लगे ॥ ३७ ॥ दूसरे ग्वालबालोंके साथ खेलनेके लिये बहुत-सी सामग्री लेकर वे घरसे निकल पड़ते और गोष्ठ (गायोंके रहनेके स्थान) के पास ही अपने बछड़ोंको चराते ॥ ३८ ॥ श्याम और राम कहीं बाँसुरी बजा रहे हैं, तो कहीं गुलेल या ढेलवाँससे ढेले या गोलियाँ फेंक रहे हैं । किसी समय अपने पैरोंके घुँघरूपर तान छेड़ रहे हैं, तो कहीं बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे हैं ॥ ३९ ॥ एक ओर देखिये तो साँड़ बन-बनकर हँकड़ते हुए आपसमें लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर मोर, कोयल, बंदर आदि पशु-पक्षियोंकी बोलियाँ निकाल रहे हैं । परीक्षित्‌ ! इस प्रकार सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ साधारण बालकोंके समान खेलते रहते ॥ ४० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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