शनिवार, 13 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

ब्रह्माजी के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति

जगत्त्रयान्तोदधिसम्प्लवोदे
नारायणस्योदरनाभिनालात् ।
विनिर्गतोऽजस्त्विति वाङ्‌ न वै मृषा
किं त्वीश्वर त्वन्न विनिर्गतोऽस्मि ॥ १३ ॥
नारायणस्त्वं न हि सर्वदेहिनां
आत्मास्यधीशाखिललोकसाक्षी ।
नारायणोऽङ्‌गं नरभूजलायनात्
तच्चापि सत्यं न तवैव माया ॥ १४ ॥

श्रुतियाँ कहती हैं कि जिस समय तीनों लोक प्रलयकालीन जल में लीन थे, उस समय उस जल में स्थित श्रीनारायणके नाभिकमल से ब्रह्माका जन्म हुआ । उनका यह कहना किसी प्रकार असत्य नहीं हो सकता । तब आप ही बतलाइये, प्रभो ! क्या मैं आपका पुत्र नहीं हूँ ? ॥ १३ ॥ प्रभो ! आप समस्त जीवोंके आत्मा हैं । इसलिये आप नारायण (नारजीव और अयनआश्रय) हैं । आप समस्त जगत् के  और जीवों के अधीश्वर हैं, इसलिये आप नारायण (नारजीव और अयनप्रवर्तक) हैं । आप समस्त लोकोंके साक्षी हैं, इसलिये भी नारायण (नारजीव और अयनजाननेवाला) हैं । नर से उत्पन्न होनेवाले जलमें निवास करनेके कारण जिन्हें नारायण (नारजल और अयननिवासस्थान) कहा जाता है, वे भी आपके एक अंश ही हैं । वह अंशरूपसे दीखना भी सत्य नहीं है, आपकी माया ही है ॥ १४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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