रविवार, 21 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

 

श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

 

कालिय पर कृपा

 

तस्य ह्रदे विहरतो भुजदण्डघूर्ण

वार्घोषमङ्‌ग वरवारणविक्रमस्य ।

आश्रुत्य तत् स्वसदनाभिभवं निरीक्ष्य

चक्षुःश्रवाः समसरत् तदमृष्यमाणः ॥ ८ ॥

तं प्रेक्षणीयसुकुमारघनावदातं

श्रीवत्सपीतवसनं स्मितसुन्दरास्यम् ।

क्रीडन्तमप्रतिभयं कमलोदराङ्‌घ्रिं

सन्दश्य मर्मसु रुषा भुजया चछाद ॥ ९ ॥

तं नागभोगपरिवीतमदृष्टचेष्टम्

आलोक्य तत्प्रियसखाः पशुपा भृशार्ताः ।

कृष्णेऽर्पितात्मसुहृदर्थकलत्रकामा

दुःखानुशोकभयमूढधियो निपेतुः ॥ १० ॥

गावो वृषा वत्सतर्यः क्रन्दमानाः सुदुःखिताः ।

कृष्णे न्यस्तेक्षणा भीता रुदत्य इव तस्थिरे ॥ ११ ॥

 

प्रिय परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ श्रीकृष्ण कालियदह में कूदकर अतुल बलशाली मतवाले गजराज के समान जल उछालने लगे। इस प्रकार जल-क्रीड़ा करनेपर उनकी भुजाओंकी टक्करसे जलमें बड़े जोरका शब्द होने लगा। आँखसे ही सुननेवाले कालिय नाग ने वह आवाज सुनी और देखा कि कोई मेरे निवास-स्थानका तिरस्कार कर रहा है। उसे यह सहन न हुआ। वह चिढक़र भगवान्‌ श्रीकृष्ण के सामने आ गया ॥ ८ ॥ उसने देखा कि सामने एक साँवला-सलोना बालक है। वर्षाकालीन मेघके समान अत्यन्त सुकुमार शरीर है, उसमें लगकर आँखें हटनेका नाम ही नहीं लेतीं। उसके वक्ष:स्थलपर एक सुनहली रेखाश्रीवत्सका चिह्न है और वह पीले रंगका वस्त्र धारण किये हुए है। बड़े मधुर एवं मनोहर मुखपर मन्द-मन्द मुसकान अत्यन्त शोभायमान हो रही है। चरण इतने सुकुमार और सुन्दर हैं, मानो कमलकी गद्दी हो। इतना आकर्षक रूप होनेपर भी जब कालिय नागने देखा कि बालक तनिक भी न डरकर इस विषैले जलमें मौजसे खेल रहा है, तब उसका क्रोध और भी बढ़ गया। उसने श्रीकृष्णको मर्मस्थानोंमें डँसकर अपने शरीरके बन्धनसे उन्हें जकड़ लिया ॥ ९ ॥ भगवान्‌ श्रीकृष्ण नागपाशमें बँधकर निश्चेष्ट हो गये। यह देखकर उनके प्यारे सखा ग्वालबाल बहुत ही पीडि़त हुए और उसी समय दु:ख, पश्चात्ताप और भयसे मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़े। क्योंकि उन्होंने अपने शरीर, सुहृद्, धन-सम्पत्ति, स्त्री, पुत्र, भोग और कामनाएँसब कुछ भगवान्‌ श्रीकृष्णको ही समर्पित कर रखा था ॥ १० ॥ गाय, बैल, बछिया और बछड़े बड़े दु:खसे डकराने लगे। श्रीकृष्णकी ओर ही उनकी टकटकी बँध रही थी। वे डरकर इस प्रकार खड़े हो गये, मानो रो रहे हों। उस समय उनका शरीर हिलता-डोलता तक न था ॥ ११ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से

 

 




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