॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
कालिय
पर कृपा
तस्य
ह्रदे विहरतो भुजदण्डघूर्ण
वार्घोषमङ्ग
वरवारणविक्रमस्य ।
आश्रुत्य
तत् स्वसदनाभिभवं निरीक्ष्य
चक्षुःश्रवाः
समसरत् तदमृष्यमाणः ॥ ८ ॥
तं
प्रेक्षणीयसुकुमारघनावदातं
श्रीवत्सपीतवसनं
स्मितसुन्दरास्यम् ।
क्रीडन्तमप्रतिभयं
कमलोदराङ्घ्रिं
सन्दश्य
मर्मसु रुषा भुजया चछाद ॥ ९ ॥
तं
नागभोगपरिवीतमदृष्टचेष्टम्
आलोक्य
तत्प्रियसखाः पशुपा भृशार्ताः ।
कृष्णेऽर्पितात्मसुहृदर्थकलत्रकामा
दुःखानुशोकभयमूढधियो
निपेतुः ॥ १० ॥
गावो
वृषा वत्सतर्यः क्रन्दमानाः सुदुःखिताः ।
कृष्णे
न्यस्तेक्षणा भीता रुदत्य इव तस्थिरे ॥ ११ ॥
प्रिय
परीक्षित् ! भगवान् श्रीकृष्ण कालियदह में कूदकर अतुल बलशाली मतवाले गजराज के
समान जल उछालने लगे। इस प्रकार जल-क्रीड़ा करनेपर उनकी भुजाओंकी टक्करसे जलमें
बड़े जोरका शब्द होने लगा। आँखसे ही सुननेवाले कालिय नाग ने वह आवाज सुनी और देखा
कि कोई मेरे निवास-स्थानका तिरस्कार कर रहा है। उसे यह सहन न हुआ। वह चिढक़र भगवान्
श्रीकृष्ण के सामने आ गया ॥ ८ ॥ उसने देखा कि सामने एक साँवला-सलोना बालक है।
वर्षाकालीन मेघके समान अत्यन्त सुकुमार शरीर है, उसमें लगकर
आँखें हटनेका नाम ही नहीं लेतीं। उसके वक्ष:स्थलपर एक सुनहली रेखा— श्रीवत्सका चिह्न है और वह पीले रंगका वस्त्र धारण किये हुए है। बड़े मधुर
एवं मनोहर मुखपर मन्द-मन्द मुसकान अत्यन्त शोभायमान हो रही है। चरण इतने सुकुमार
और सुन्दर हैं, मानो कमलकी गद्दी हो। इतना आकर्षक रूप होनेपर
भी जब कालिय नागने देखा कि बालक तनिक भी न डरकर इस विषैले जलमें मौजसे खेल रहा है,
तब उसका क्रोध और भी बढ़ गया। उसने श्रीकृष्णको मर्मस्थानोंमें
डँसकर अपने शरीरके बन्धनसे उन्हें जकड़ लिया ॥ ९ ॥ भगवान् श्रीकृष्ण नागपाशमें
बँधकर निश्चेष्ट हो गये। यह देखकर उनके प्यारे सखा ग्वालबाल बहुत ही पीडि़त हुए और
उसी समय दु:ख, पश्चात्ताप और भयसे मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर
गिर पड़े। क्योंकि उन्होंने अपने शरीर, सुहृद्, धन-सम्पत्ति, स्त्री, पुत्र,
भोग और कामनाएँ—सब कुछ भगवान् श्रीकृष्णको ही
समर्पित कर रखा था ॥ १० ॥ गाय, बैल, बछिया
और बछड़े बड़े दु:खसे डकराने लगे। श्रीकृष्णकी ओर ही उनकी टकटकी बँध रही थी। वे
डरकर इस प्रकार खड़े हो गये, मानो रो रहे हों। उस समय उनका
शरीर हिलता-डोलता तक न था ॥ ११ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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