सोमवार, 6 जुलाई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

 

श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

 

यज्ञपत्नियों पर कृपा

 

श्रीगोप ऊचुः -

राम राम महाबाहो कृष्ण दुष्टनिबर्हण ।

एषा वै बाधते क्षुत् नः तच्छान्तिं कर्तुमर्हथः ॥ १ ॥

 

श्रीशुक उवाच -

इति विज्ञापितो गोपैः भगवान् देवकीसुतः ।

भक्ताया विप्रभार्यायाः प्रसीदन् इदमब्रवीत् ॥ २ ॥

प्रयात देवयजनं ब्राह्मणा ब्रह्मवादिनः ।

सत्रं आङ्‌गिरसं नाम ह्यासते स्वर्गकाम्यया ॥ ३ ॥

तत्र गत्वौदनं गोपा याचतास्मद् विसर्जिताः ।

कीर्तयन्तो भगवत आर्यस्य मम चाभिधाम् ॥ ४ ॥

इत्यादिष्टा भगवता गत्वा याचन्त ते तथा ।

कृताञ्जलिपुटा विप्रान् दण्डवत् पतिता भुवि ॥ ५ ॥

हे भूमिदेवाः श्रृणुत कृष्णस्यादेशकारिणः ।

प्राप्ताञ्जानीत भद्रं वो गोपान् नो रामचोदितान् ॥ ६ ॥

गाश्चारयतौ अविदूर ओदनं

रामाच्युतौ वो लषतो बुभुक्षितौ ।

तयोर्द्विजा ओदनमर्थिनोर्यदि

श्रद्धा च वो यच्छत धर्मवित्तमाः ॥ ७ ॥

दीक्षायाः पशुसंस्थायाः सौत्रामण्याश्च सत्तमाः ।

अन्यत्र दीक्षितस्यापि नान्नमश्नन् हि दुष्यति ॥ ८ ॥

इति ते भगवद् याच्ञां शृण्वन्तोऽपि न शुश्रुवुः ।

क्षुद्राशा भूरिकर्माणो बालिशा वृद्धमानिनः ॥ ९ ॥

देशः कालः पृथग् द्रव्यं मंत्रतंत्रर्त्विजोऽग्नयः ।

देवता यजमानश्च क्रतुर्धर्मश्च यन्मयः ॥ १० ॥

तं ब्रह्म परमं साक्षाद् भगवन्तं अधोक्षजम् ।

मनुष्यदृष्ट्या दुष्प्रज्ञा मर्त्यात्मानो न मेनिरे ॥ ११ ॥

न ते यदोमिति प्रोचुः न नेति च परन्तप ।

गोपा निराशाः प्रत्येत्य तथोचुः कृष्णरामयोः ॥ १२ ॥

तदुपाकर्ण्य भगवान् प्रहस्य जगदीश्वरः ।

व्याजहार पुनर्गोपान् दर्शयँलौकिकीं गतिम् ॥ १३ ॥

मां ज्ञापयत पत्‍नीभ्यः ससङ्‌कर्षणमागतम् ।

दास्यन्ति काममन्नं वः स्निग्धा मय्युषिता धिया ॥ १४ ॥

 

ग्वालबालों ने कहानयनाभिराम बलराम ! तुम बड़े पराक्रमी हो। हमारे चित्तचोर श्याम- सुन्दर ! तुमने बड़े-बड़े दुष्टों का संहार किया है। उन्हीं दुष्टों के समान यह भूख भी हमें सता रही है। अत: तुम दोनों इसे भी बुझानेका कोई उपाय करो ॥ १ ॥

 

श्रीशुकदेवजीने कहापरीक्षित्‌ ! जब ग्वालबालोंने देवकीनन्दन भगवान्‌ श्रीकृष्णसे इस प्रकार प्रार्थना की, तब उन्होंने मथुराकी अपनी भक्त ब्राह्मणपत्नियोंपर अनुग्रह करनेके लिये यह बात कही॥ २ ॥ मेरे प्यारे मित्रो ! यहाँसे थोड़ी ही दूरपर वेदवादी ब्राह्मण स्वर्गकी कामनासे आङ्गिरस नामका यज्ञ कर रहे हैं। तुम उनकी यज्ञशालामें जाओ ॥ ३ ॥ ग्वालबालो ! मेरे भेजनेसे वहाँ जाकर तुमलोग मेरे बड़े भाई भगवान्‌ श्रीबलरामजीका और मेरा नाम लेकर कुछ थोड़ा-सा भातभोजनकी सामग्री माँग लाओ॥ ४ ॥ जब भगवान्‌ने ऐसी आज्ञा दी, तब ग्वालबाल उन ब्राह्मणोंकी यज्ञशालामें गये और उनसे भगवान्‌की आज्ञाके अनुसार ही अन्न माँगा। पहले उन्होंने पृथ्वीपर गिरकर दण्डवत्-प्रणाम किया और फिर हाथ जोडक़र कहा॥ ५ ॥ पृथ्वीके मूर्तिमान् देवता ब्राह्मणो ! आपका कल्याण हो! आपसे निवेदन है कि हम व्रजके ग्वाले हैं। भगवान्‌ श्रीकृष्ण और बलरामकी आज्ञासे हम आपके पास आये हैं। आप हमारी बात सुनें ॥ ६ ॥ भगवान्‌ बलराम और श्रीकृष्ण गौएँ चराते हुए यहाँसे थोड़े ही दूरपर आये हुए हैं। उन्हें इस समय भूख लगी है और वे चाहते हैं कि आपलोग उन्हें थोड़ा-सा भात दे दें। ब्राह्मणो ! आप धर्मका मर्म जानते हैं। यदि आपकी श्रद्धा हो, तो उन भोजनार्थियोंके लिये कुछ भात दे दीजिये ॥ ७ ॥ सज्जनो! जिस यज्ञदीक्षामें पशुबलि होती है, उसमें और सौत्रामणी यज्ञमें दीक्षित पुरुषका अन्न नहीं खाना चाहिये। इनके अतिरिक्त और किसी भी समय किसी भी यज्ञमें दीक्षित पुरुषका भी अन्न खानेमें कोई दोष नहीं है ॥ ८ ॥ परीक्षित्‌! इस प्रकार भगवान्‌के अन्न माँगनेकी बात सुनकर भी उन ब्राह्मणोंने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया। वे चाहते थे स्वर्गादि तुच्छ फल और उनके लिये बड़े-बड़े कर्मोंमें उलझे हुए थे। सच पूछो तो वे ब्राह्मण ज्ञानकी दृष्टिसे थे बालक ही, परंतु अपनेको बड़ा ज्ञानवृद्ध मानते थे ॥ ९ ॥ परीक्षित्‌! देश, काल अनेक प्रकारकी सामग्रियाँ, भिन्न-भिन्न कर्मोंमें विनियुक्त मन्त्र, अनुष्ठानकी पद्धति, ऋत्विज्-ब्रह्मा आदि यज्ञ करानेवाले, अग्रि, देवता, यजमान, यज्ञ और धर्मइन सब रूपोंमें एकमात्र भगवान्‌ ही प्रकट हो रहे हैं ॥ १० ॥ वे ही इन्द्रियातीत परब्रह्म भगवान्‌ श्रीकृष्ण स्वयं ग्वालबालोंके द्वारा भात माँग रहे हैं। परंतु इन मूर्खोंने, जो अपनेको शरीर ही माने बैठे हैं, भगवान्‌को भी एक साधारण मनुष्य ही माना और उनका सम्मान नहीं किया ॥ ११ ॥ परीक्षित्‌! जब उन ब्राह्मणोंने हाँया ना’—कुछ नहीं कहा, तब ग्वालबालोंकी आशा टूट गयी; वे लौट आये और वहाँकी सब बात उन्होंने श्रीकृष्ण तथा बलरामसे कह दी ॥ १२ ॥ उनकी बात सुनकर सारे जगत्के स्वामी भगवान्‌ श्रीकृष्ण हँसने लगे। उन्होंने ग्वालबालोंको समझाया कि संसारमें असफलता तो बार-बार होती ही है, उससे निराश नहीं होना चाहिये; बार-बार प्रयत्न करते रहनेसे सफलता मिल ही जाती है।फिर उनसे कहा॥ १३ ॥ मेरे प्यारे ग्वालबालो ! इस बार तुमलोग उनकी पत्नियों के पास जाओ और उनसे कहो कि राम और श्याम यहाँ आये हैं। तुम जितना चाहोगे उतना भोजन वे तुम्हें देंगी। वे मुझसे बड़ा प्रेम करती हैं। उनका मन सदा-सर्वदा मुझमें लगा रहता है॥ १४ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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