॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वादश स्कन्ध– पहला अध्याय (पोस्ट०२)
कलियुग के राजवंशों
का वर्णन
सप्ताभीरा आवभृत्या दश गर्दभिनो नृपाः
कङ्काः षोडश भूपाला भविष्यन्त्यतिलोलुपाः २९
ततोऽष्टौ यवना भाव्याश्चतुर्दश तुरुष्ककाः
भूयो दश गुरुण्डाश्च मौला एकादशैव तु ३०
एते भोक्ष्यन्ति पृथिवीं दश वर्षशतानि च
नवाधिकां च नवतिं मौला एकादश क्षितिम् ३१
भोक्ष्यन्त्यब्दशतान्यङ्ग त्रीणि तैः संस्थिते ततः
किलकिलायां नृपतयो भूतनन्दोऽथ वङ्गिरिः ३२
शिशुनन्दिश्च तद्भ्राता यशोनन्दिः प्रवीरकः
इत्येते वै वर्षशतं भविष्यन्त्यधिकानि षट् ३३
तेषां त्रयोदश सुता भवितारश्च बाह्लिकाः
पुष्पमित्रोऽथ राजन्यो दुर्मित्रोऽस्य तथैव च ३४
एककाला इमे भूपाः सप्तान्ध्राः सप्त कौशलाः
विदूरपतयो भाव्या निषधास्तत एव हि ३५
मागधानां तु भविता विश्वस्फूर्जिः पुरञ्जयः
करिष्यत्यपरो वर्णान्पुलिन्दयदुमद्र कान् ३६
प्रजाश्चाब्रह्मभूयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः
वीर्यवान्क्षत्रमुत्साद्य पद्मवत्यां स वै पुरि
अनुगङ्गमाप्रयागं गुप्तां भोक्ष्यति मेदिनीम् ३७
सौराष्ट्रावन्त्याभीराश्च शूरा अर्बुदमालवाः
व्रात्या द्विजा भविष्यन्ति शूद्र प्राया जनाधिपाः ३८
सिन्धोस्तटं चन्द्रभागां कौन्तीं काश्मीरमण्डलम्
भोक्ष्यन्ति शूद्रा व्रात्याद्या म्लेच्छाश्चाब्रह्मवर्चसः
३९
तुल्यकाला इमे राजन्म्लेच्छप्रायाश्च भूभृतः
एतेऽधर्मानृतपराः फल्गुदास्तीव्रमन्यवः ४०
स्त्रीबालगोद्विजघ्नाश्च परदारधनादृताः
उदितास्तमितप्राया अल्पसत्त्वाल्पकायुषः ४१
असंस्कृताः क्रियाहीना रजसा तमसावृताः
प्रजास्ते भक्षयिष्यन्ति म्लेच्छा राजन्यरूपिणः ४२
तन्नाथास्ते जनपदास्तच्छीलाचारवादिनः
अन्योन्यतो राजभिश्च क्षयं यास्यन्ति पीडिताः ४३
परीक्षित् ! इसके पश्चात् अवभृति-नगरीके सात आभीर, दस गर्दभी और सोलह कङ्क पृथ्वीका राज्य करेंगे। ये सब-के-सब बड़े लोभी
होंगे ॥ २९ ॥ इनके बाद आठ यवन और चौदह तुर्क राज्य करेंगे। इसके बाद दस गुरुण्ड और
ग्यारह मौन नरपति होंगे ॥ ३० ॥ मौनोंके अतिरिक्त ये सब एक हजार निन्यानबे वर्षतक
पृथ्वीका उपभोग करेंगे। तथा ग्यारह मौन नरपति तीन सौ वर्षतक पृथ्वीका शासन करेंगे।
जब उनका राज्यकाल समाप्त हो जायगा, तब किलिकिला नामकी
नगरीमें भूतनन्द नामका राजा होगा। भूतनन्दका वङ्गिरि, वङ्गिरिका
भाई शिशुनन्दि तथा यशोनन्दि और प्रवीरक—ये एक सौ छ: वर्षतक राज्य करेंगे ॥ ३१—३३ ॥
इनके तेरह पुत्र होंगे और वे सब-के-सब बाह्लिक कहलायेंगे। उनके पश्चात् पुष्पमित्र
नामक क्षत्रिय और उसके पुत्र दुॢमत्रका राज्य होगा ॥ ३४ ॥ परीक्षित् !
बाह्लिकवंशी नरपति एक साथ ही विभिन्न प्रदेशोंमें राज्य करेंगे। उनमें सात
अन्ध्रदेशके तथा सात ही कोसलदेशके अधिपति होंगे, कुछ
विदूर-भूमिके शासक और कुछ निषधदेशके स्वामी होंगे ॥ ३५ ॥
इनके बाद मगध देशका राजा होगा विश्वस्फूर्जि । यह
पूर्वोक्त पुरञ्जयके अतिरिक्त द्वितीय पुरञ्जय कहलायेगा। यह ब्राह्मणादि उच्च
वर्णोंको पुलिन्द, यदु और मद्र आदि म्लेच्छप्राय जातियोंके रूपमें परिणत कर देगा
॥ ३६ ॥ इसकी बुद्धि इतनी दुष्ट होगी कि यह ब्राह्मण, क्षत्रिय
और वैश्योंका नाश करके शूद्रप्राय जनताकी रक्षा करेगा। यह अपने बल-वीर्यसे
क्षत्रियोंको उजाड़ देगा और पद्मवती पुरीको राजधानी बनाकर हरिद्वारसे लेकर
प्रयागपर्यन्त सुरक्षित पृथ्वीका राज्य करेगा ॥ ३७ ॥ परीक्षित् ! ज्यों-ज्यों घोर
कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवन्ती, आभीर, शूर, अर्बुद और मालवदेशके ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जायँगे तथा राजालोग भी
शूद्रतुल्य हो जायँगे ॥ ३८ ॥ सिन्धुतट, चन्द्रभागाका तटवर्ती
प्रदेश, कौन्तीपुरी और काश्मीर- मण्डलपर प्राय: शूद्रोंका,
संस्कार एवं ब्रह्मतेजसे हीन नाममात्रके द्विजोंका और म्लेच्छोंका
राज्य होगा ॥ ३९ ॥
परीक्षित् ! ये सब-के-सब राजा आचार-विचारमें
म्लेच्छप्राय होंगे। ये सब एक ही समय भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें राज्य करेंगे। ये
सब-के-सब परले सिरेके झूठे, अधार्मिक और स्वल्प दान करनेवाले होंगे। छोटी-छोटी बातोंको
लेकर ही ये क्रोधके मारे आगबबूला हो जाया करेंगे ॥ ४० ॥ ये दुष्ट लोग स्त्री,
बच्चों, गौओं, ब्राह्मणोंको
मारनेमें भी नहीं हिचकेंगे। दूसरेकी स्त्री और धन हथिया लेनेके लिये ये सर्वदा
उत्सुक रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न तो घटते। क्षणमें रुष्ट तो
क्षणमें तुष्ट। इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी ॥ ४१ ॥ इनमें परम्परागत संस्कार नहीं
होंगे। ये अपने कर्तव्य-कर्मका पालन नहीं करेंगे। रजोगुण और तमोगुणसे अंधे बने
रहेंगे। राजाके वेषमें वे म्लेच्छ ही होंगे। वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजाका खून
चूसेंगे ॥ ४२ ॥ जब ऐसे लोगोंका शासन होगा, तो देशकी प्रजामें
भी वैसे ही स्वभाव, आचरण और भाषणकी वृद्धि हो जायगी। राजालोग
तो उनका शोषण करेंगे ही, वे आपसमें भी एक-दूसरेको उत्पीडि़त
करेंगे और अन्तत: सब-के-सब नष्ट हो जायँगे ॥ ४३ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
द्वादशस्कन्धे प्रथमोऽध्यायः
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें