॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वादश स्कन्ध– पहला अध्याय (पोस्ट०१)
कलियुग के
राजवंशों का वर्णन
राजोवाच -
स्वधामानुगते कृष्ण यदुवंशविभूषणे ।
कस्य वंशोऽभवत् पृथ्व्यां एतद् आचक्ष्व मे मुने १
श्रीशुक उवाच
योऽन्त्यः पुरञ्जयो नाम भाव्यो बार्हद्रथो नृप
तस्यामात्यस्तु शुनको हत्वा स्वामिनमात्मजम् २
प्रद्योतसंज्ञं राजानं कर्ता यत्पालकः सुतः
विशाखयूपस्तत्पुत्रो भविता राजकस्ततः ३
नन्दिवर्धनस्तत्पुत्रः पञ्च प्रद्योतना इमे
अष्टत्रिंशोत्तरशतं भोक्ष्यन्ति पृथिवीं नृपाः ४
शिशुनागस्ततो भाव्यः काकवर्णस्तु तत्सुतः
क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः ५
विधिसारः सुतस्तस्या जातशत्रुर्भविष्यति
दर्भकस्तत्सुतो भावी दर्भकस्याजयः स्मृतः ६
नन्दिवर्धन आजेयो महानन्दिः सुतस्ततः
शिशुनागा दशैवैते सष्ट्युत्तरशतत्रयम् ७
समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कुरुश्रेष्ठ कलौ नृपाः
महानन्दिसुतो राजन्शूद्रा गर्भोद्भवो बली ८
महापद्मपतिः कश्चिन्नन्दः क्षत्रविनाशकृत्
ततो नृपा भविष्यन्ति शूद्र प्रायास्त्वधार्मिकाः ९
स एकच्छत्रां पृथिवीमनुल्लङ्घितशासनः
शासिष्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः १०
तस्य चाष्टौ भविष्यन्ति सुमाल्यप्रमुखाः सुताः
य इमां भोक्ष्यन्ति महीं राजानश्च शतं समाः ११
नव नन्दान्द्विजः कश्चित्प्रपन्नानुद्धरिष्यति
तेषां अभावे जगतीं मौर्या भोक्ष्यन्ति वै कलौ १२
स एव चन्द्र गुप्तं वै द्विजो राज्येऽभिषेक्ष्यति
तत्सुतो वारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धनः १३
सुयशा भविता तस्य सङ्गतः सुयशःसुतः
शालिशूकस्ततस्तस्य सोमशर्मा भविष्यति १४
शतधन्वा ततस्तस्य भविता तद्बृहद्रथः
मौर्या ह्येते दश नृपाः सप्तत्रिंशच्छतोत्तरम्
समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कलौ कुरुकुलोद्वह १५
अग्निमित्रस्ततस्तस्मात्सुज्येष्ठो भविता ततः १६
वसुमित्रो भद्रकश्च पुलिन्दो भविता सुतः
ततो घोषः सुतस्तस्माद्वज्रमित्रो भविष्यति १७
ततो भागवतस्तस्माद्देवभूतिरिति श्रुत:
शुङ्गा दशैते भोक्ष्यन्ति भूमिं वर्षशताधिकम् १८
ततः काण्वानियं भूमिर्यास्यत्यल्पगुणान्नृप
शुङ्गं हत्वा देवभूतिं काण्वोऽमात्यस्तु कामिनम् १९
स्वयं करिष्यते राज्यं वसुदेवो महामतिः
तस्य पुत्रस्तु भूमित्रस्तस्य नारायणः सुतः
नारायणस्य भविता सुशर्मा नाम विश्रुत: २०
काण्वायना इमे भूमिं चत्वारिंशच्च पञ्च च
शतानि त्रीणि भोक्ष्यन्ति वर्षाणां च कलौ युगे २१
हत्वा काण्वं सुशर्माणं तद्भृत्यो वृषलो बली
गां भोक्ष्यत्यन्ध्रजातीयः कञ्चित्कालमसत्तमः २२
कृष्णनामाथ तद्भ्राता भविता पृथिवीपतिः
श्रीशान्तकर्णस्तत्पुत्रः पौर्णमासस्तु तत्सुतः २३
लम्बोदरस्तु तत्पुत्रस्तस्माच्चिबिलको नृपः
मेघस्वातिश्चिबिलकादटमानस्तु तस्य च २४
अनिष्टकर्मा हालेयस्तलकस्तस्य चात्मजः
पुरीषभीरुस्तत्पुत्रस्ततो राजा सुनन्दनः २५
चकोरो बहवो यत्र शिवस्वातिररिन्दमः
तस्यापि गोमती पुत्रः पुरीमान्भविता ततः २६
मेदशिराः शिवस्कन्दो यज्ञश्रीस्तत्सुतस्ततः
विजयस्तत्सुतो भाव्यश्चन्द्र विज्ञः सलोमधिः २७
एते त्रिंशन्नृपतयश्चत्वार्यब्दशतानि च
षट्पञ्चाशच्च पृथिवीं भोक्ष्यन्ति कुरुनन्दन २८
राजा परीक्षित्ने पूछा—भगवन् ! यदुवंशशिरोमणि भगवान्
श्रीकृष्ण जब अपने परमधाम पधार गये, तब पृथ्वीपर
किस वंशका राज्य हुआ ? तथा अब किसका राज्य होगा ? आप कृपा करके मुझे यह बतलाइये ॥ १ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहा—प्रिय परीक्षित् ! मैंने तुम्हें
नवें स्कन्धमें यह बात बतलायी थी कि जरासन्धके पिता बृहद्रथके वंशमें अन्तिम राजा
होगा पुरञ्जय अथवा रिपुञ्जय। उसके मन्त्रीका नाम होगा शुनक। वह अपने स्वामीको मार
डालेगा और अपने पुत्र प्रद्योतको राजसिंहासनपर अभिषिक्त करेगा। प्रद्योतका पुत्र
होगा पालक, पालकका विशाखयूप, विशाखयूपका राजक और
राजकका पुत्र होगा नन्दिवर्धन। प्रद्योतवंशमें यही पाँच नरपति होंगे। इनकी संज्ञा
होगी ‘प्रद्योतन’। ये एक सौ अड़तीस वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे ॥ २—४ ॥
इसके पश्चात् शिशुनाग नामका राजा होगा। शिशुनागका
काकवर्ण, उसका क्षेमधर्मा और क्षेमधर्माका पुत्र होगा क्षेत्रज्ञ ॥ ५ ॥
क्षेत्रज्ञका विधिसार, उसका अजातशत्रु, फिर दर्भक और दर्भकका पुत्र अजय होगा ॥ ६ ॥ अजयसे नन्दिवद्र्धन और उससे
महानन्दिका जन्म होगा। शिशुनाग-वंशमें ये दस राजा होंगे। ये सब मिलकर कलियुगमें
तीन सौ साठ वर्षतक पृथ्वीपर राज्य करेंगे। प्रिय परीक्षित् ! महानन्दिकी शूद्रा
पत्नीके गर्भसे नन्द नामका पुत्र होगा। वह बड़ा बलवान् होगा। महानन्दि ‘महापद्म’
नामक निधिका अधिपति होगा। इसीलिये लोग उसे ‘महापद्म’ भी कहेंगे। वह क्षत्रिय
राजाओंके विनाशका कारण बनेगा। तभीसे राजालोग प्राय: शूद्र और अधार्मिक हो जायँगे ॥
७—९ ॥
महापद्म पृथ्वीका एकच्छत्र शासक होगा। उसके शासनका
उल्लङ्घन कोई भी नहीं कर सकेगा। क्षत्रियोंके विनाशमें हेतु होनेकी दृष्टिसे तो
उसे दूसरा परशुराम ही समझना चाहिये ॥ १० ॥ उसके सुमाल्य आदि आठ पुत्र होंगे। वे
सभी राजा होंगे और सौ वर्षतक इस पृथ्वीका उपभोग करेंगे ॥ ११ ॥ कौटिल्य, वात्स्यायन तथा चाणक्यके नामसे प्रसिद्ध एक ब्राह्मण विश्वविख्यात नन्द और
उनके सुमाल्य आदि आठ पुत्रोंका नाश कर डालेगा। उनका नाश हो जानेपर कलियुगमें
मौर्यवंशी नरपति पृथ्वीका राज्य करेंगे ॥ १२ ॥ वही ब्राह्मण पहले-पहल चन्द्रगुप्त
मौर्यको राजाके पदपर अभिषिक्त करेगा। चन्द्रगुप्तका पुत्र होगा वारिसार और
वारिसारका अशोकवद्र्धन ॥ १३ ॥ अशोकवद्र्धनका पुत्र होगा सुयश। सुयशका सङ्गत,
सङ्गतका शालिशूक और शालिशूकका सोमशर्मा ॥ १४ ॥ सोमशर्माका शतधन्वा
और शतधन्वाका पुत्र बृहद्रथ होगा। कुरुवंशविभूषण परीक्षित् ! मौर्यवंशके ये दस[*]
नरपति कलियुगमें एक सौ सैंतीस वर्षतक पृथ्वीका उपभोग करेंगे।
बृहद्रथका सेनापति होगा पुष्पमित्र शुङ्ग। वह अपने स्वामीको मारकर स्वयं राजा बन
बैठेगा। पुष्पमित्रका अग्रिमित्र और अग्रिमित्रका सुज्येष्ठ होगा ॥ १५-१६ ॥
सुज्येष्ठका वसुमित्र, वसुमित्रका भद्रक और भद्रकका पुलिन्द,
पुलिन्दका घोष और घोषका पुत्र होगा वज्रमित्र ॥ १७ ॥ वज्रमित्रका
भागवत और भागवतका पुत्र होगा देवभूति। शुङ्गवंशके ये दस नरपति एक सौ बारह वर्षतक
पृथ्वीका पालन करेंगे ॥ १८ ॥
परीक्षित् ! शुङ्गवंशी नरपतियोंका राज्यकाल समाप्त
होनेपर यह पृथ्वी कण्ववंशी नरपतियोंके हाथमें चली जायगी। कण्ववंशी नरपति अपने
पूर्ववर्ती राजाओंकी अपेक्षा कम गुणवाले होंगे। शुङ्गवंशका अन्तिम नरपति देवभूति
बड़ा ही लम्पट होगा। उसे उसका मन्त्री कण्ववंशी वसुदेव मार डालेगा और अपने
बुद्धिबलसे स्वयं राज्य करेगा। वसुदेवका पुत्र होगा भूमित्र, भूमित्रका नारायण और नारायणका सुशर्मा। सुशर्मा बड़ा यशस्वी होगा ॥ १९-२०
॥ कण्ववंशके ये चार नरपति काण्वायन कहलायेंगे और कलियुगमें तीन सौ पैंतालीस वर्षतक
पृथ्वीका उपभोग करेंगे ॥ २१ ॥ प्रिय परीक्षित् ! कण्ववंशी सुशर्माका एक शूद्र
सेवक होगा—बली। वह अन्ध्रजातिका एवं बड़ा दुष्ट होगा। वह सुशर्माको मारकर कुछ
समयतक स्वयं पृथ्वीका राज्य करेगा ॥ २२ ॥ इसके बाद उसका भाई कृष्ण राजा होगा।
कृष्णका पुत्र श्रीशान्तकर्ण और उसका पौर्णमास होगा ॥ २३ ॥ पौर्णमासका लम्बोदर और
लम्बोदरका पुत्र चिबिलक होगा। चिबिलकका मेघस्वाति, मेघस्वातिका
अटमान, अटमानका अनिष्टकर्मा, अनिष्टकर्माका
हालेय, हालेयका तलक, तलकका पुरीषभीरु
और पुरीषभीरुका पुत्र होगा राजा सुनन्दन ॥ २४-२५ ॥ परीक्षित् ! सुनन्दनका पुत्र
होगा चकोर; चकोरके आठ पुत्र होंगे, जो
सभी ‘बहु’ कहलायेंगे। इनमें सबसे छोटेका नाम होगा शिवस्वाति। वह बड़ा वीर होगा और
शत्रुओंका दमन करेगा। शिवस्वातिका गोमतीपुत्र और उसका पुत्र होगा पुरीमान् ॥ २६ ॥
पुरीमान्का मेद:शिरा, मेद:शिराका शिवस्कन्द, शिवस्कन्दका यज्ञश्री, यज्ञश्रीका विजय और विजयके दो
पुत्र होंगे—चन्द्रविज्ञ और लोमधि ॥ २७ ॥ परीक्षित् ! ये तीस राजा चार सौ छप्पन
वर्षतक पृथ्वीका राज्य भोगेंगे ॥ २८ ॥
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[*] मौर्यों की संख्या चन्द्रगुप्त को
मिलाकर नौ ही होती है। विष्णुपुराणादि में चन्द्रगुप्त से पाँचवें दशरथ नाम के एक
और मौर्यवंशी राजा का उल्लेख मिलता है। उसीको लेकर यहाँ दस संख्या समझनी चाहिये।
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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