बुधवार, 25 जनवरी 2023

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे ! हे नाथ नारायण वासुदेव !!


भाग्य अनुकूल हो तो रास्ते में गिरी हुई वस्तु भी ज्यों-की-त्यों पड़ी रहती है। परन्तु भाग्य के प्रतिकूल होने पर घर के भीतर तिजोरी में रखी हुई वस्तु भी खो जाती है। जीव बिना किसी सहारे के दैव की दयादृष्टि से जंगल में भी बहुत दिनों तक जीवित रहता है, परन्तु भाग्य के विपरीत होने पर घर में सुरक्षित रहने पर भी मर जाता है ॥ 

“पथि च्युतं तिष्ठति दिष्टरक्षितं 
गृहे स्थितं तद्विहतं विनश्यति ।
जीवत्यनाथोऽपि तदीक्षितो वने 
गृहेऽभिगुप्तोऽस्य हतो न जीवति ॥“

....श्रीमद्भागवत०७/२/४०


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