संसार में जो पापों की वृद्धि हो रही है-झूठ, कपट, चोरी, हिंसा, व्यभिचार एवं अनाचार बढ़ रहे हैं, व्यक्तियों की भाँति राष्ट्रों में भी परस्पर द्वेष और कलह की वृद्धि हो रही है, बलवान्, दुर्बलों को सता रहे हैं, लोग नीति और धर्म के मार्ग को छोड़कर अनीति और अधर्म के मार्गपर आरूढ़ हो रहे हैं, लौकिक उन्नति और भौतिक सुख को ही लोगों ने अपना ध्येय बना लिया है और उसी की प्राप्ति के लिये सब लोग यत्नवान् हैं, विलासिता और इन्द्रियलोलुपता बढ़ती जा रही है, भक्ष्याभक्ष्य का विचार उठता जा रहा है, जीभ के स्वाद और शरीर के आराम के लिये दूसरों के कष्ट की तनिक भी परवा नहीं की जाती, मादक द्रव्यों का प्रचार बढ़ रहा है, बेईमानी और घूसखोरी उन्नति पर है,एक-दूसरे के प्रति लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है,मुकदमेबाजी बढ़ रही है, अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है, दम्भ और पाखण्ड की वृद्धि हो रही है---इन सब का कारण यही है कि लोगों ने वर्तमान जीवन को ही अपना जीवन मान रखा है; इसके आगे भी कोई जीवन है, इसमें उनका विश्वास नहीं है। इसीलिये वे वर्तमान जीवन को ही सुखी बनाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। जब तक जियो, सुख से जियो; कर्जा लेकर भी अच्छे-अच्छे पदार्थों का उपभोग करो। मरने के बाद क्या होगा, किसने देख रखा है।'*
{* यावज्जीवेत्
सुखं जीवेदृणं कृत्वा घृतं पिबेत् । ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ (चार्वाक)}
इसी सर्वनाशकारी मान्यता की ओर आज प्रायः सारा संसार जा रहा है। यही कारण है
कि वह सुख के बदले अधिकाधिक दुःख में ही
फंसता जा रहा है। परलोक और पुनर्जन्म को न मानने का यह अवश्यम्भावी फल है। आज हम
इसी परलोक और पुनर्जन्म के सिद्धान्त की कुछ चर्चा करते हैं और इस सिद्धान्त को
माननेवालों का क्या कर्तव्य है-इसपर भी विचार कर रहे हैं।
जैसा कि हम पहले कह आये हैं,
परलोक और पुनर्जन्म के सिद्धान्त का प्रत्यक्ष अथवा
अप्रत्यक्षरूप से हमारे परलोक और पुनर्जन्म सभी शास्त्रों ने समर्थन किया है।
वेदों से लेकर आधुनिक दार्शनिक ग्रन्थों तक सभी ने एक स्वर से इस सिद्धान्त की
पुष्टि की है। स्मृतियों, पुराणों तथा महाभारतादि इतिहासग्रन्थों में तो इस विषय के इतने प्रमाण भरे हैं
कि उन सब को यदि संगृहीत किया जाय तो एक बहुत बड़ी पुस्तक तैयार हो सकती है। इसके
लिये न तो अवकाश है और न इसकी उतनी आवश्यकता ही प्रतीत होती है। प्रस्तुत निबन्ध में
उपनिषद्,
गीता, मनुस्मृति,
योगसूत्र आदि कुछ थोड़े-से चुने हुए प्रामाणिक ग्रन्थोंमें से ही कुछ प्रमाण लेकर इस सिद्धान्त की पुष्टि की जायगी और
युक्तियों के द्वारा भी इसे सिद्ध करनेकी चेष्टा की जायगी।
शेष आगामी पोस्ट में
......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्म (एवं वैराग्य)“ पुस्तक
से
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