आज संसार में, विशेषकर
पाश्चात्य देशों में आत्महत्याओं की संख्या जो दिनोंदिन बढ़ रही है–आये दिन लोगों के जीवन से निराश होकर अथवा असफलता से दुःखी
होकर,
अपमान एवं अपकीर्ति से बचने के लिये अथवा इच्छा की पूर्ति न
होने के दुःख से डूबकर,
फाँसी लगाकर, जलकर,
विषपान करके अथवा गोली खाकर प्राणत्याग करने की बातें
पढ़ीसुनी और देखी जाती हैं---उसका एकमात्र प्रधान कारण आत्मा की अमरता में तथा परलोक में
अविश्वास है। यदि हमें यह निश्चय हो जाय कि हमारा जीवन इस शरीर तक ही सीमित नहीं
है,
इसके पहले भी हम थे और इसके बाद भी हम रहेंगे,
इस शरीर का अन्त कर देने से हमारे कष्टों का अन्त नहीं हो
जायगा,
बल्कि इस शरीर के भोगों को भोगे बिना ही प्राणत्याग कर देने
से तथा आत्महत्यारूप नया घोर पाप करने से हमारा भविष्य जीवन और भी अधिक कष्टमय
होगा तो हम कभी आत्महत्या करने का साहस नहीं करेंगे। अत्यन्त खेद का विषय है कि
पाश्चात्य जडवादी सभ्यता के सम्पर्क में आने से यह पाप हमारे आधुनिक परलोक और
पुनर्जन्म शिक्षाप्राप्त नवयुवकों में भी घर कर रहा है और आजकल ऐसी बातें हमारे
देशमें भी देखी-सुनी जाने लगी हैं। हमारे शास्त्रों ने आत्महत्या को बहुत बड़ा पाप
माना है और उसका फल सूकर, कूकर आदि अन्धकारमय योनियोंकी प्राप्ति बतलाया है।
श्रुति कहती है:-
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्मनो जनाः ॥
.....................(ईशोपनिषद् ३)
अर्थात् वे असुर-सम्बन्धी लोक [अथवा आसुरी योनियाँ] आत्मा के अदर्शनरूप अज्ञान
से आच्छादित हैं। जो कोई भी आत्मा का हनन करनेवाले लोग हैं,
वे मरने के अनन्तर उन्हीं में जाते हैं।
शेष आगामी पोस्ट
में
......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्म (एवं वैराग्य)“ पुस्तक
से
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