शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

परलोक और पुनर्जन्म (पोस्ट 12)

  

१ शरीर से होनेवाले दोष तीन हैंबिना दिया हुआ धन लेना, शास्त्रविरुद्ध हिंसा और परस्त्रीगमन ।

२ वाचिक पाप चार हैं-- कठोर वचन कहना, झूठ बोलना, चुगली करना और बे-सिर-पैर की ऊल-जलूल बातें करना।

३ मानसिक पाप तीन हैं--दूसरे का माल मारने का दाँव सोचना, मन से दूसरे का अनिष्टचिन्तन करना और मैं शरीर हूँ-इस प्रकार का झूठा अभिमान करना।

(मनु० १२। ७-६-५)

 

इन त्रिविध पापों का नाश करने के लिये भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में तीन प्रकार के तप बतलाये हैं-शारीरिक तप, वाचिक तप और मानस तप। उक्त तीन प्रकार के तप का स्वरूप भगवान् ने इस प्रकार बतलाया है-

 

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।

ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते॥

...(गीता १७। १४)

देवता, ब्राह्मण, गुरु (माता-पिता एवं आचार्य आदि) और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा- यह शरीरसम्बन्धी तप कहा जाता है।

 

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।

स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते॥

...(गीता १७। १५)

जो उद्वेग को न करनेवाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो वेद-शास्त्रों के पठन एवं परमेश्वर के नाम-जप का अभ्यास है-वही वाणीसम्बन्धी तप कहा जाता है।'

 

मन:प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।

भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥

...(गीता १७। १६)

'मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह और अन्तःकरण की पवित्रता इस प्रकार यह मनसम्बन्धी तप कहा जाता है।

प्रत्येक कल्याणकामी पुरुष को चाहिये कि वह उपर्युक्त तीनों प्रकार के तप का सात्त्विक भाव से अभ्यास करे।

 

{श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत् त्रिविधं नरैः।

अफलाकाक्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते ॥}

...(गीता १७। १७)

 

शेष आगामी पोस्ट में

......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्म (एवं वैराग्य)“ पुस्तक से             

# क्या है परलोक?



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