शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 01)

 


 

नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

नारद उवाच

 

सुखदुःखविपर्यासो यदा समनुपद्यते ।

नैनं प्रज्ञा सुनीतं वा त्रायते नापि पौरुषम् ॥ १ ॥

 

नारदजी कहते हैं— शुकदेव ! जब मनुष्य सुखको दुःख और दुःखको सुख समझने लगता है, उस समय बुद्धि, उत्तम नीति और पुरुषार्थ भी उसकी रक्षा नहीं कर पाते ॥ १ ॥

 

स्वभावाद् यत्नमातिष्ठेद् यत्नवान् नावसीदति ।

जरामरणरोगेभ्यः प्रियमात्मानमुद्धरेत् ॥ २ ॥

 

अतः मनुष्यको स्वभावतः ज्ञानप्राप्तिके लिये यत्न करना चाहिये; क्योंकि यत्न करनेवाला पुरुष कभी दुःखमें नहीं पड़ता । आत्मा सबसे बढ़कर प्रिय है; अतः जरा, मृत्यु और रोगोंके कष्टसे उसका उद्धार करे ॥ २ ॥

 

रुजन्ति हि शरीराणि रोगाः शारीरमानसाः ।

सायका इव तीक्ष्णाग्राः प्रयुक्ता दृढधन्विभिः ॥ ३ ॥

 

शारीरिक और मानसिक रोग सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले वीर पुरुषोंके छोड़े हुए तीक्ष्ण बाणोंके समान शरीरको पीड़ा देते हैं ॥ ३ ॥

 

व्यथितस्य विधित्साभिस्ताम्यतो जीवितैषिणः ।

अवशस्य विनाशाय शरीरमपकृष्यते ॥ ४ ॥

 

तृष्णासे व्यथित, दुःखी एवं विवश होकर जीनेकी इच्छा रखनेवाले मनुष्यका शरीर विनाशकी ओर ही खिंचता चला जाता है ॥ ४ ॥

 

स्त्रवन्ति न निवर्तन्ते स्त्रोतांसि सरितामिव ।

आयुरादाय मर्त्यानां रात्र्यहानि पुनः पुनः ॥ ५ ॥

 

जैसे नदियों का प्रवाह आगे की ओर ही बढ़ता चला जाता है, पीछे की ओर नहीं लौटता, उसी प्रकार रात और दिन भी मनुष्यों की आयु का अपहरण करते हुए बारम्बार आते और बीतते चले जाते हैं ॥ ५ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



3 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷🌿🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 🌺🍃💐💐जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नार्तत्राणपारायण: स
    भगवन्ननारायणो मे गति:
    हरि: शरणम् !!

    जवाब देंहटाएं

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