शनिवार, 29 जुलाई 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 02)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

व्यत्ययो ह्ययमत्यन्तं पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः ।

जातान् मर्त्याञ्जरयति निमेषान् नावतिष्ठते ॥ ६ ॥

 

शुक्ल और कृष्ण - दोनों पक्षों का निरन्तर होनेवाला यह परिवर्तन मनुष्यों को जराजीर्ण कर रहा है। यह कुछ क्षणके लिये भी विश्राम नहीं लेता है॥६॥

 

सुखदुःखानि आदित्यो भूतानामजरो जरयत्यसौ ।

ह्यस्तमभ्येति पुनः पुनरुदेति च॥७॥

 

सूर्य प्रतिदिन अस्त होते और फिर उदय लेते हैं । वे स्वयं अजर होकर भी प्रतिदिन प्राणियोंके सुख और दुःखको जीर्ण करते रहते हैं ॥ ७ ॥

 

अदृष्टपूर्वानादाय भावानपरिशङ्कितान्।

इष्टानिष्टान् मनुष्याणामस्तं गच्छन्ति रात्रयः ॥ ८ ॥

 

ये रात्रियाँ मनुष्योंके लिये कितनी ही अपूर्व तथा असम्भावित प्रिय-अप्रिय घटनाएँ लिये आती और चली जाती हैं ॥ ८ ॥

 

योऽयमिच्छेद् यथाकामं कामानां तदवाप्नुयात् ।

यदि स्यान्न पराधीनं पुरुषस्य क्रियाफलम् ॥ ९ ॥

 

यदि जीव के किये हुए कर्मों का फल पराधीन न होता तो जो जिस वस्तुकी इच्छा करता, वह अपनी उसी कामना को रुचि के अनुसार प्राप्त कर लेता ॥ ९॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



3 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼🌿💐जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 💐🌺🍂💐जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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