नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय
व्यत्ययो
ह्ययमत्यन्तं पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः ।
जातान्
मर्त्याञ्जरयति निमेषान् नावतिष्ठते ॥ ६ ॥
शुक्ल और
कृष्ण - दोनों पक्षों का निरन्तर होनेवाला यह परिवर्तन मनुष्यों को जराजीर्ण कर
रहा है। यह कुछ क्षणके लिये भी विश्राम नहीं लेता है॥६॥
सुखदुःखानि
आदित्यो भूतानामजरो जरयत्यसौ ।
ह्यस्तमभ्येति
पुनः पुनरुदेति च॥७॥
सूर्य
प्रतिदिन अस्त होते और फिर उदय लेते हैं । वे स्वयं अजर होकर भी प्रतिदिन
प्राणियोंके सुख और दुःखको जीर्ण करते रहते हैं ॥ ७ ॥
अदृष्टपूर्वानादाय
भावानपरिशङ्कितान्।
इष्टानिष्टान्
मनुष्याणामस्तं गच्छन्ति रात्रयः ॥ ८ ॥
ये रात्रियाँ
मनुष्योंके लिये कितनी ही अपूर्व तथा असम्भावित प्रिय-अप्रिय घटनाएँ लिये आती और
चली जाती हैं ॥ ८ ॥
योऽयमिच्छेद्
यथाकामं कामानां तदवाप्नुयात् ।
यदि
स्यान्न पराधीनं पुरुषस्य क्रियाफलम् ॥ ९ ॥
यदि जीव के
किये हुए कर्मों का फल पराधीन न होता तो जो जिस वस्तुकी इच्छा करता, वह अपनी उसी कामना को रुचि के अनुसार प्राप्त कर लेता ॥ ९॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से
Jay shree Ram
जवाब देंहटाएं🌼🌿💐जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
💐🌺🍂💐जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण