शनिवार, 29 जुलाई 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 03)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

संयताश्च हि दक्षाश्च मतिमन्तश्च मानवाः ।

दृश्यन्ते निष्फलाः सन्तः प्रहीणाः सर्वकर्मभिः ॥ १० ॥

 

बड़े-बड़े संयमी, बुद्धिमान् और चतुर मनुष्य भी समस्त कर्मोंसे  श्रान्त होकर असफल होते देखे जाते हैं ॥ १० ॥

 

अपरे बालिशाः सन्तो निर्गुणाः पुरुषाधमाः ।

आशीर्भिरप्यसंयुक्ता दृश्यन्ते सर्वकामिनः ॥ ११ ॥

 

किंतु दूसरे मूर्ख, गुणहीन और अधम मनुष्य भी किसी का आशीर्वाद न मिलने पर भी सम्पूर्ण कामनाओं से सम्पन्न दिखायी देते हैं ॥ ११ ॥

 

भूतानामपरः कश्चिद्धिंसायां सततोत्थितः ।

वञ्चनायां च लोकस्य स सुखेष्वेव जीर्यते ॥ १२ ॥

 

कोई-कोई मनुष्य तो सदा प्राणियोंकी हिंसामें ही लगा रहता है और सब लोगोंको धोखा दिया करता है तो भी वह सुख ही भोगते-भोगते बूढ़ा होता है ॥ १२ ॥

 

अचेष्टमानमासीनं श्रीः कञ्चिदुपतिष्ठते ।

कश्चित् कर्मानुसृत्यान्यो न प्राप्यमधिगच्छति ॥ १३॥

 

कितने ही ऐसे हैं, जो कोई काम न करके चुपचाप बैठे रहते हैं, फिर भी लक्ष्मी उनके पास अपने-आप पहुँच जाती है और कुछ लोग काम करके भी अपनी प्राप्य वस्तु को उपलब्ध नहीं कर पाते ॥ १३॥

 

अपराधं समाचक्ष्व पुरुषस्य स्वभावतः ।

शुक्रमन्यत्र सम्भूतं पुनरन्यत्र गच्छति ॥ १४ ॥

 

इसमें स्वभावतः पुरुष का ही अपराध (प्रारब्ध - दोष) समझो । वीर्य अन्यत्र उत्पन्न होता है और सन्तानोत्पादन के लिये अन्यत्र जाता है ॥ १४ ॥

 

तस्य योनौ प्रयुक्तस्य गर्भो भवति वा न वा ।

आम्रपुष्पोपमा यस्य निवृत्तिरुपलभ्यते ॥ १५ ॥

 

कभी तो वह योनिमें पहुँचकर गर्भ धारण कराने में समर्थ होता है और कभी नहीं होता तथा कभी-कभी आम के बौर के समान वह व्यर्थ ही झर जाता है ॥ १५ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 

 



3 टिप्‍पणियां:

  1. 🌸🌾🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🌸🌿💐जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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