नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय
उपर्युपरि
लोकस्य सर्वो गन्तुं समीहते।
यतते
च यथाशक्ति न च तद् वर्तते तथा ॥ ३८ ॥
सब लोग लोकों
के ऊपर से - ऊपर स्थान में जाना चाहते हैं और यथाशक्ति इसके लिये चेष्टा भी करते
हैं;
किंतु वैसा करनेमें समर्थ नहीं होते ॥ ३८ ॥
ऐश्वर्यमदमत्तांश्च
मत्तान् मद्यमदेन च।
अप्रमत्ताः
शठाञ्छूरा विक्रान्ताः पर्युपासते ॥ ३९ ॥
प्रमादरहित
पराक्रमी शूरवीर भी ऐश्वर्य तथा मदिरा के मद से उन्मत्त रहनेवाले शठ मनुष्यों की
सेवा करते हैं ॥ ३९ ॥
क्लेशाः
परिनिवर्तन्ते केषाञ्चिदसमीक्षिताः ।
स्वं
स्वं च पुनरन्येषां न किञ्चिदधिगम्यते ॥ ४० ॥
कितने ही
लोगोंके क्लेश ध्यान दिये बिना ही निवृत्त हो जाते हैं तथा दूसरों को अपने ही धन में
से समय पर कुछ भी नहीं मिलता ॥ ४० ॥
महच्च
फलवैषम्यं दृश्यते कर्मसन्धिषु ।
वहन्ति
शिबिकामन्ये यान्त्यन्ये शिबिकागताः ॥ ४१ ॥
कर्मों के फल
में भी बड़ी भारी विषमता देखने में आती है। कुछ लोग पालकी ढोते हैं और दूसरे लोग
उसी पालकी में बैठकर चलते हैं ॥ ४१ ॥
सर्वेषामृद्धिकामानामन्ये
रथपुरःसराः।
मनुष्याश्च
गतस्त्रीकाः शतशो विविधस्त्रियः ॥ ४२ ॥
सभी मनुष्य
धन और समृद्धि चाहते हैं;
परंतु उनमें से थोड़े- से ही ऐसे लोग होते हैं, जो रथपर चढ़कर चलते हैं। कितने ही पुरुष स्त्रीरहित हैं और सैकड़ों मनुष्य
कई स्त्रियोंवाले हैं ॥ ४२ ॥
......शेष
आगामी पोस्ट में
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से
🥀🌼🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
🌸🌿💐🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !! नारायण नारायण नारायण नारायण