मंगलवार, 1 अगस्त 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 08)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

उपर्युपरि लोकस्य सर्वो गन्तुं समीहते।

यतते च यथाशक्ति न च तद् वर्तते तथा ॥ ३८ ॥

 

सब लोग लोकों के ऊपर से - ऊपर स्थान में जाना चाहते हैं और यथाशक्ति इसके लिये चेष्टा भी करते हैं; किंतु वैसा करनेमें समर्थ नहीं होते ॥ ३८ ॥

 

ऐश्वर्यमदमत्तांश्च मत्तान् मद्यमदेन च।

अप्रमत्ताः शठाञ्छूरा विक्रान्ताः पर्युपासते ॥ ३९ ॥

 

प्रमादरहित पराक्रमी शूरवीर भी ऐश्वर्य तथा मदिरा के मद से उन्मत्त रहनेवाले शठ मनुष्यों की सेवा करते हैं ॥ ३९ ॥

 

क्लेशाः परिनिवर्तन्ते केषाञ्चिदसमीक्षिताः ।

स्वं स्वं च पुनरन्येषां न किञ्चिदधिगम्यते ॥ ४० ॥

 

कितने ही लोगोंके क्लेश ध्यान दिये बिना ही निवृत्त हो जाते हैं तथा दूसरों को अपने ही धन में से समय पर कुछ भी नहीं मिलता ॥ ४० ॥

 

महच्च फलवैषम्यं दृश्यते कर्मसन्धिषु ।

वहन्ति शिबिकामन्ये यान्त्यन्ये शिबिकागताः ॥ ४१ ॥

 

कर्मों के फल में भी बड़ी भारी विषमता देखने में आती है। कुछ लोग पालकी ढोते हैं और दूसरे लोग उसी पालकी में बैठकर चलते हैं ॥ ४१ ॥

 

सर्वेषामृद्धिकामानामन्ये रथपुरःसराः।

मनुष्याश्च गतस्त्रीकाः शतशो विविधस्त्रियः ॥ ४२ ॥

 

सभी मनुष्य धन और समृद्धि चाहते हैं; परंतु उनमें से थोड़े- से ही ऐसे लोग होते हैं, जो रथपर चढ़कर चलते हैं। कितने ही पुरुष स्त्रीरहित हैं और सैकड़ों मनुष्य कई स्त्रियोंवाले हैं ॥ ४२ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🥀🌼🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 🌸🌿💐🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !! नारायण नारायण नारायण नारायण

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