मंगलवार, 1 अगस्त 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 09)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

द्वन्द्वारामेषु भूतेषु गच्छन्त्येकैकशो नराः ।

इदमन्यत् पदं पश्य मात्र मोहं करिष्यसि ॥ ४३ ॥

 

सभी प्राणी सुख-दु:ख आदि द्वन्द्वोंमें रम रहे हैं। मनुष्य उनमेंसे एक-एकका अनुभव करते हैं अर्थात् किसीको सुखका अनुभव होता है, किसीको दुःखका । यह जो ब्रह्म नामक वस्तु है, इसे सबसे भिन्न एवं विलक्षण समझो। इसके विषयमें तुम्हें मोहग्रस्त नहीं होना चाहिये ॥ ४३ ॥

 

त्यज धर्ममधर्मं च उभे सत्यानृते त्यज ।

उभे सत्यानृते त्यक्त्वा येन त्यजसि तं त्यज ॥ ४४ ॥

 

धर्म और अधर्मको छोड़ो। सत्य और असत्य दोनोंका त्याग करो । सत्य और असत्य दोनोंका त्याग करके जिससे त्याग करते हो, उस अहंकारको भी त्याग दो ॥ ४४ ॥

 

एतत् ते परमं गुह्यमाख्यातमृषिसत्तम ।

येन देवाः परित्यज्य मर्त्यलोकं दिवं गताः ॥ ४५ ॥

 

मुनिश्रेष्ठ ! यह मैंने तुमसे परम गूढ़ बात बतलायी है, जिससे

देवतालोग मर्त्यलोक छोड़कर स्वर्गलोकको चले गये ॥ ४५ ॥

 

नारदस्य वचः श्रुत्वा शुकः परमबुद्धिमान् ।

सञ्चिन्त्य मनसा धीरो निश्चयं नाध्यगच्छत ॥ ४६ ॥

 

नारदजीकी बात सुनकर परम बुद्धिमान् और धीरचित्त शुकदेवजीने मन-ही-मन बहुत विचार किया; किंतु सहसा वे किसी निश्चयपर न पहुँच सके ॥ ४६ ॥

 

पुत्रदारैर्महान् क्लेशो विद्याम्नाये महाञ्च्छ्रमः ।

किं नु स्याच्छाश्वतं स्थानमल्पक्लेशं महोदयम् ॥ ४७ ॥

 

वे सोचने लगे, स्त्री- पुत्रोंके झमेलेमें पड़नेसे महान् क्लेश होगा । विद्याभ्यासमें भी बहुत अधिक परिश्रम है। कौन-सा ऐसा उपाय है, जिससे सनातन पद प्राप्त हो जाय। उस साधनमें क्लेश तो थोड़ा हो, किन्तु अभ्युदय महान् हो ॥ ४७ ॥

 

ततो मुहूर्तं सञ्चिन्त्य निश्चितां गतिमात्मनः ।

परावरज्ञो धर्मस्य परां नैःश्रेयसीं गतिम् ॥ ४८ ॥

 

तदनन्तर उन्होंने दो घड़ीतक अपनी निश्चित गतिके विषय में विचार किया; फिर भूत और भविष्य के ज्ञाता शुकदेवजीको अपने धर्मकी कल्याणमयी परम गतिका निश्चय हो गया ॥ ४८ ॥

 

कथं त्वहमसंश्लिष्टो गच्छेयं गतिमुत्तमाम् ।

नावर्तेयं यथा भूयो योनिसङ्करसागरे ॥ ४९ ॥

 

फिर वे सोचने लगे, मैं सब प्रकारकी उपाधियोंसे मुक्त होकर किस प्रकार उस उत्तम गति को प्राप्त करूँ, जहाँसे फिर इस संसार - सागरमें आना न पड़े ॥ ४९ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



6 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो बहुत ही अद्भुत कथा है ..

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  2. 🌹🌼🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. 🌹💖💐🌾जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: हरि:

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