बुधवार, 2 अगस्त 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 10)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

परं भावं हि काङ्क्षामि यत्र नावर्तते पुनः ।

सर्वसङ्गान् परित्यज्य निश्चितो मनसा गतिम् ॥ ५० ॥

 

जहाँ जानेपर जीव की पुनरावृत्ति नहीं होती, मैं उसी परमभाव को प्राप्त करना चाहता हूँ । सब प्रकार की आसक्तियों का परित्याग करके

मैंने मन के द्वारा उत्तम गति प्राप्त करने का निश्चय किया है ॥ ५० ॥

 

तत्र यास्यामि यत्रात्मा शमं मेऽधिगमिष्यति ।

अक्षयश्चाव्ययश्चैव यत्र स्थास्यामि शाश्वतः ॥ ५१ ॥

 

अब मैं वहीं जाऊँगा, जहाँ मेरे आत्माको शान्ति मिलेगी तथा जहाँ मैं अक्षय, अविनाशी और सनातनरूपसे स्थित रहूँगा॥५१॥

 

न तु योगमृते शक्या प्राप्तुं सा परमा गतिः ।

अवबन्धो हि बुद्धस्य कर्मभिर्नोपपद्यते ॥ ५२॥

 

परंतु योगके बिना उस परम गतिको नहीं प्राप्त किया जा सकता । बुद्धिमान् का कर्मोंके निकृष्ट बन्धनसे बँधा रहना उचित नहीं है ॥ ५२ ॥

 

तस्माद् योगं समास्थाय त्यक्त्वा गृहकलेवरम् ।

वायुभूतः प्रवेक्ष्यामि तेजोराशिं दिवाकरम् ॥ ५३ ॥

 

अतः मैं योग का आश्रय ले इस देह – गेह का परित्याग करके वायुरूप हो तेजोराशिमय सूर्यमण्डल में प्रवेश करूँगा ॥ ५३ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से



4 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण।

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  2. 🌸🌿🌷जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. 🌹💟💐💐जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव

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