बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०५)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज:।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव:॥ २०॥
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।

अर्जुन उवाच

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत॥ २१॥
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे॥ २२॥
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता:।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव:॥ २३॥

हे महीपते धृतराष्ट्र! अब शस्त्र चलनेकी तैयारी हो ही रही थी कि उस समय अन्यायपूर्वक राज्यको धारण करनेवाले राजाओं और उनके साथियोंको व्यवस्थितरूपसे सामने खड़े हुए देखकर कपिध्वज पाण्डुपुत्र अर्जुनने अपना गाण्डीव धनुष उठा लिया और अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्णसे यह वचन बोले।

अर्जुन बोले—

हे अच्युत ! दोनों सेनाओंके मध्यमें मेरे रथको (आप तबतक) खड़ा कीजिये, जबतक मैं (युद्धक्षेत्रमें) खड़े हुए इन युद्धकी इच्छावालोंको देख न लूँ कि इस युद्धरूप उद्योगमें मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है। दुष्टबुद्धि दुर्योधन का युद्ध में प्रिय करने की इच्छावाले जो ये राजालोग इस सेनामें आये हुए हैं, युद्ध करनेको उतावले हुए (इन सबको) मैं देख लूँ।

ॐ तत्सत् !

शेष आगामी पोस्ट में .........
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)


1 टिप्पणी:

  1. 🍁🏵️🍁जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे द्वारकानाथ आपका सहस्त्रों कोटिश: वंदन🙏🙏

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