॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सञ्जय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्॥ २४॥
भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान्कुरूनिति॥ २५॥
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितॄनथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ २६॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
संजय बोले—
हे भरतवंशी राजन्! निद्रा-विजयी अर्जुनके द्वारा इस तरह कहनेपर अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्णने दोनों सेनाओं के मध्यभाग में पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने श्रेष्ठ रथको खड़ा करके इस प्रकार कहा कि 'हे पार्थ ! इन इकट्ठे हुए कुरुवंशियों को देख। उसके बाद पृथानन्दन अर्जुनने उन दोनों ही सेनाओंमें स्थित पिताओं को, पितामहों को, आचार्यों को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा।
व्याख्या—
‘युद्ध के लिए एकत्र हुए इन कुरुवंशियों को देख’—ऐसा कहने में भगवान् की यह गूढ़ाभिसंधि थी कि इन कुरुवंशियों को देखकर अर्जुन के भीतर छिपा कौटुम्बिक ममतायुक्त मोह जाग्रत हो जाय और मोह जाग्रत होनेसे अर्जुन जिज्ञासु बन जाय, जिससे अर्जुन का तथा उनके निमित्त से भावी मनुष्यों का भी मोहनाश करने के लिए गीता का महान उपदेश दिया जा सके |
ॐ तत्सत् !
शेष आगामी पोस्ट में .........
🌺☘️🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय हो मेरे प्रभु द्वारकानाथ की