बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 04)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

अग्निवंशमें परशुरामजी, सूर्यवंशमें रामजी और चन्द्रवंशमें बलरामजी‒इस प्रकार तीनों वंशोंमें ही भगवान्‌ने अवतार लिये । ये तीनों अवतार ‘राम’ नामवाले हैं | इन तीनोंका हेतु ‘राम’ नाम ही है । इस प्रकार सब अक्षरोंमें ‘राम’ नाम प्राण है । कृसानु, भानु और हिमकर‒इन तीनोंमेंसे ‘राम’ नाम निकाल देनेपर वे कुछ कामके नहीं रहते हैं, उनमें कुछ भी तथ्य नहीं रहता । यहाँ नामके तीनों अवयवोंको बतानेका तात्पर्य यह है कि ‘राम’ नाम जपनेसे साधकके पापोंका नाश होता है, अज्ञानका नाश होता है और अन्धकार दूर होकर प्रकाश हो जाता है । अशान्ति, सन्ताप, जलन आदि मिटकर शान्तिकी प्राप्ति हो जाती है । ऐसा जो रघुनाथजी महाराजका ‘राम’ नाम है, उसकी मैं वन्दना करता हूँ । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒

बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो ।
अगुन अनूपम गुन निधान  सो ॥

                                                    (मानस, बालकाण्ड दोहा १९ । २)
यह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और महेशमय है । विधि, हरि, हर‒सृष्टिमात्रकी उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली, ये तीन शक्तियों हैं । इनमें ब्रह्माजी सृष्टिकी रचना करते हैं, विष्णुभगवान् पालन करते हैं और शंकरभगवान् संहार करते हैं ।
संसारमें ‘राम’ नामसे बढ़कर कुछ नहीं है । सब कुछ  शक्ति इसमें भरी हुई है । इसलिये सन्तोंने कहा है‒
“रामदास सुमिरण करो रिध सिध याके माँय ।“
ऋद्धि-सिद्धि सब इसके भीतर भरी हुई है । विश्वास न हो तो रात-दिन जप करके देखो । सब काम हो जायगा, कोई काम बाकी नहीं रहेगा ।
यह ‘राम’ नाम वेदोंके प्राणके समान है, शास्त्रोंका और वर्णमालाका भी प्राण है । प्रणवको वेदोंका प्राण माना गया है । प्रणव तीन मात्रावाला ‘ॐ’ कार पहले-ही-पहले प्रकट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय बना । ऋक्, साम, यजुः‒ये तीनों मुख्य वेद हैं । इन तीनोंका प्राकट्य गायत्रीसे,गायत्रीका प्राकट्य तीन मात्रावाले ‘ॐ’ कारसे और यह ‘ॐ’ कार‒प्रणव सबसे पहले हुआ । इस प्रकार यह ‘ॐ’ कार (प्रणव) वेदोंका प्राण है ।
यहाँपर ‘राम’ नामको वेदोंका प्राण कहनेमें तात्पर्य है कि ‘राम’ नामसे‘प्रणव’ होता है । प्रणवमेंसे ‘र’ निकाल तो ‘पणव’ हो जायगा और ‘पणव’ का अर्थ ढोल हो जायगा । ऐसे ही ‘ॐ’ मेंसे ‘म’ निकालकर उच्चारण करो वह शोकका वाचक हो जायगा । प्रणवमें ‘र’ और ‘ॐ’ में ‘म’ कहना आवश्यक है । इसलिये यह ‘राम’ नाम वेदोंका प्राण भी है ।
राम !   राम !!   राम !!!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे


3 टिप्‍पणियां:

  1. राम सकल नामन ते अधिका।
    होहु नाथ खग गण बधइकआ।।🙏🙏🙏

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  2. 🌼🌿🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    श्री राम जय राम जय जय राम
    जय श्री राम जय जय सियाराम

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