गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०७)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥ २७॥
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥ २८॥
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥ २९॥
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन:॥ ३०॥

अपनी-अपनी जगहपर स्थित उन सम्पूर्ण बान्धवोंको देखकर वे कुन्तीनन्दन अर्जुन अत्यन्त कायरतासे युक्त होकर विषाद करते हुए ऐसा बोले ।

अर्जुन बोले—

हे कृष्ण! युद्धकी इच्छावाले इस कुटुम्ब-समुदायको अपने सामने उपस्थित देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मुख सूख रहा है तथा मेरे शरीरमें कँपकँपी आ रही है एवं रोंगटे खड़े हो रहे हैं। हाथसे गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी जल रही है। मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है और मैं खड़े रहनेमें भी असमर्थ हो रहा हूँ।

ॐ तत्सत् !

शेष आगामी पोस्ट में .........
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌺🌿🌸जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    द्वारकानाथ आपकी जय हो

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