॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥ ३१॥
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥ ३२॥
हे केशव! मैं लक्षणों (शकुनों)-को भी विपरीत देख रहा हूँ और युद्धमें स्वजनोंको मारकर श्रेय (लाभ) भी नहीं देख रहा हूँ। हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ, न राज्य चाहता हूँ और न सुखोंको ही चाहता हूँ। हे गोविन्द! हमलोगोंको राज्यसे क्या लाभ? भोगोंसे क्या लाभ? अथवा जीनेसे भी क्या लाभ?
ॐ तत्सत् !
शेष आगामी पोस्ट में .........
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌼🌿🏵️जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय हो प्रभु द्वारिकानाथ