गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 05)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

‘अगुन अनूपम गुन निधान सो’‒यह ‘राम’ नाम निर्गुण अर्थात् गुण रहित है । सत्त्व, रज और तमसे अतीत है, उपमारहित है और गुणोंका भण्डार है, दया,क्षमा, सन्तोष आदि सद्‌गुणोंका खजाना है, नाम लेनेसे ये सभी आप-से-आप आ जाते हैं । यह ‘राम’ नाम सगुण और निर्गुण दोनोंका वाचक है । आगेके प्रकरणमें आयेगा‒

अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी ।
उभय  प्रबोधक  चतुर  दुभाषी ॥
                                 …….  (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ८)

यह  ‘राम’ नाम सगुण और निर्गुण‒दोनोंको जनाने-वाला है । इसलिये सगुण उपासक भी ‘राम’ नाम जपते और निर्गुण उपासक भी ‘राम’ नाम जपते हैं । सगुण-साकारके उपासक हों, चाहे निर्गुण-निराकारके उपासक हों । ‘राम’ नामका जप सबको करना चाहिये । यह दोनोंकी प्राप्ति करा देता है ।

‘राम’ नाम अमृतके समान है; जैसे, बढ़िया भोजनमें घी और दूध मिला दो तो वह भोजन बहुत बढ़िया बनता है । ऐसे ही ‘राम’ नामको दूसरे साधनोंके साथ करो, चाहे केवल ‘राम’ नामका जप करो, यह हमें निहाल कर देगा ।

‘राम’ नामके समान तो केवल ‘राम’ नाम ही है । यह सब साधनोंसे श्रेष्ठ है । नामके दस अपराधोंमें बताया गया है‒‘धर्मान्तरैः साम्यम्’[1] नामके साथ किसीकी उपमा दी जायगी तो वह नामापराध हो जायगा । मानो नाम अनुपम है । इसमें उपमा नहीं लग सकती । इसलिये ‘नाम’ को किसीके बराबर नहीं कह सकते ।

भगवान् श्रीराम शबरीके आश्रमपर पधारे और शबरीको कहने लगे‒

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु  धरु  मन  माहीं ॥
                                     ………. (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३५ । ७)

--‒‘मैं तुझे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर सुन और मनमें धारण कर ।’ नवधा भक्ति कहकर अन्तमें कहते हैं‒‘सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥’ (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३६ । ७) ‘तेरेमें सब प्रकारकी भक्ति दृढ़ है ।’शबरीको भक्तिके प्रकारोंका पता ही नहीं; परंतु नवधा भक्ति उसके भीतर आ गयी । किस प्रभावसे ?  ‘राम’ नामके प्रभावसे ! ऐसी उसकी लगन लगी कि ‘राम’ नाम जपते हुए रामजीके आनेकी प्रतीक्षा निरन्तर करती ही रही । इस कारण ऋषि-मुनियोंको छोड़कर शबरीके आश्रमपर भगवान् खुद पधारते हैं ।
___________________________
[1] सन्निन्दाऽसति नामवैभवकथा श्रीशेशयो-
र्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः ।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि
धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥

राम !   राम !!   राम !!!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे


1 टिप्पणी:

  1. 🌺🥀💐जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    श्री राम जय राम जय जय राम
    सीताराम सीताराम सीताराम

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...