गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी दूसरा अध्याय (पोस्ट.२०)


 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

  

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।

अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥ २८॥

 

हे भारत ! सभी प्राणी जन्मसे पहले अप्रकट थे और मरनेके बाद अप्रकट हो जायँगेकेवल बीचमें ही प्रकट दीखते हैं। अत: इसमें शोक करनेकी बात ही क्या है ?

 

व्याख्या

 

शरीरी स्वयं अविनाशी है, शरीर विनाशी है । स्थूलदृष्टि से केवल शरीरों को ही देखें तो वे जन्म से पहले भी हमारे साथ नहीं थे और मरने के बाद भी वे हमारे साथ नहीं रहेंगे ।  वर्तमान में वे हमारे साथ मिल हुए-से दीखते हैं, पर वास्तवमें हमारा उनसे प्रतिक्षण वियोग हो रहा है ।  इस तरह मिले हुए और बिछुड़ने वाले प्राणियों के लिये शोक करने से क्या लाभ ?

 

ॐ तत्सत् !

 

शेष आगामी पोस्ट में .........

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)




1 टिप्पणी:

  1. 🥀🌹🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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