॥ ॐ
श्रीपरमात्मने नम:॥
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते
हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न
हन्यते॥ १९॥
जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरीको
मारनेवाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता है, वे दोनों ही इसको नहीं जानते; क्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।
व्याख्या—
शरीरीमें कर्तापन नहीं है और
मृत्युरूप विकार भी नहीं है । कर्तापन आदि सभी विकार प्रकृतिसे मानेहुए सम्बन्ध
(मैं-पन)- में ही हैं ।
ॐ
तत्सत् !
शेष
आगामी पोस्ट में .........
गीताप्रेस,गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)
🌸🌿🥀जय श्री हरि: 🙏⚜️
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय जय श्री राम हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव जय श्री राम
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