गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी दूसरा अध्याय (पोस्ट.१२)


 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

  

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।

उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ १९॥

 

जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरीको मारनेवाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता हैवे दोनों ही इसको नहीं जानतेक्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।

 

व्याख्या

 

शरीरीमें कर्तापन नहीं है और मृत्युरूप विकार भी नहीं है । कर्तापन आदि सभी विकार प्रकृतिसे मानेहुए सम्बन्ध (मैं-पन)- में ही हैं ।

 

ॐ तत्सत् !

 

शेष आगामी पोस्ट में .........

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)




3 टिप्‍पणियां:

  1. 🌸🌿🥀जय श्री हरि: 🙏⚜️
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. जय जय श्री राम हर हर महादेव

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  3. हर हर महादेव जय श्री राम

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