गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी दूसरा अध्याय (पोस्ट.१३)


 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

  

न जायते म्रियते वा कदाचि-  

न्नायं भूत्वा भविता वा न भूय:।

अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो-  

न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २०॥

 

यह शरीरी न कभी जन्मता है और न मरता है तथा यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला नहीं है। यह जन्मरहितनित्य-निरन्तर रहनेवालाशाश्वत और अनादि है। शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता।

 

व्याख्या

 

उत्पन्न होना, सत्तावाला दीखना, बदलना, बढ़ना, घटना और नष्ट होना-ये छः विकार शरीरमें ही होते हैं ।  शरीरीमें ये विकार कभी हुए ही नहीं, कभी होंगे नहीं, कभी हो सकते ही नहीं ।

 

        शरीरी कभी उत्पन्न नहीं होता-न जायते’, ‘अजः’; उत्पन्न होकर विकारी सत्तावाला नहीं होता-अयं भूत्वा भविता वा न भूय:’; यह बदलता नहीं- शाश्वतः’; यह बढ़ता नहीं-पुराणः’, यह क्षीण नहीं होता-नित्यः’; और यह मरता नहीं-न म्रियते’, न हन्यते हन्यमाने शरीरे

 

        मुख्य विकार दो ही हैं-उत्पन्न होना और नष्ट होना ।  अतः प्रस्तुत श्लोकमें इस दोनों विकारोंका दो-दो बार निषेध किया गया है; जैसे-न जायते म्रियतेऔर अजः’, ‘न हन्यते हन्यमाने शरीरे

 

ॐ तत्सत् !

 

शेष आगामी पोस्ट में .........

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)




1 टिप्पणी:

  1. 🌸🍂💐जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...