गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी दूसरा अध्याय (पोस्ट.१६)



 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

 

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:॥ २३॥

 

शस्त्र इस शरीरी को काट नहीं सकतेअग्नि इसको जला नहीं सकतीजल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसको सुखा नहीं सकती।

 

व्याख्या

 

पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार-यह अपरा प्रकृति (जड़-विभाग) है और  स्वरूप परा प्रकृति (चेतन-विभाग) है (गीता ७।४-५) ।  अपरा प्रकृति परा प्रकृति तक पहुँच ही नहीं सकती ।  जड़ पदार्थ चेतन-तत्त्वतक कैसे पहुँच सकता है ?  इसलिये जड़ वस्तु चेतन शरीरी में किन्चिन्मात्र कोई विकार उत्पन्न नहीं कर सकती ।

 

ॐ तत्सत् !

 

शेष आगामी पोस्ट में .........

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)




1 टिप्पणी:

  1. 🌼🕉️🌿जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    ॐ श्री परमात्मने नमः

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