गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

गीता प्रबोधनी दूसरा अध्याय (पोस्ट.१०)


 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

 

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।

विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमहर्ति॥ १७॥

 

अविनाशी तो उसको जानजिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है। इस अविनाशीका विनाश कोई भी नहीं कर सकता।

 

व्याख्या

 

जिस सत्‌-तत्त्वका अभाव विद्यमान नहीं है, वही अविनाशी तत्त्व है, जिससे सम्पूर्ण संसार व्याप्त है ।  अविनाशी होने के कारण तथा सम्पूर्ण जगत्‌में व्याप्त होनेके कारण उसका कभी कोई नाश कर सकता ही नहीं ।  नाश उसीका होता है, जो नाशवान्‌ तथा एक देशमें स्थित हो ।

 

ॐ तत्सत् !

 

शेष आगामी पोस्ट में .........

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी” (कोड १५६२ से)



1 टिप्पणी:

  1. 🌼🍃🌻जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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