मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

# कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम: ॥


 

 कुछ लोग वैष्णव- धाम को 'परमपद' कहते हैं, कोई वैकुण्ठ को परमेश्वर- का 'परमधाम' बताते हैं, कोई अज्ञानान्धकार से परे जो शान्तस्वरूप परमब्रह्म है, उसे 'परमपद' मानते हैं और कुछ लोग कैवल्य मोक्ष को ही 'परमधाम' की संज्ञा देते हैं। कोई अक्षरतत्त्व की उत्कृष्टता का प्रतिपादन करते हैं, कोई गोलोक धाम को ही सबका आदिकारण कहते हैं तथा कुछ लोग भगवान्‌ की निज लीलाओं से परिपूर्ण निकुञ्ज को ही 'सर्वोत्कृष्ट पद' बताते हैं ॥

मननशील मुनि इन सबके रूप में श्रीकृष्णपद को ही प्राप्त करता है ।

 

........गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग संहिता (विश्वजित्  खण्ड- ३३/२२-२३)

 




1 टिप्पणी:

  1. श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    🌺☘️🌸जय श्री हरि: 🙏🙏

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