॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--नवाँ अध्याय..(पोस्ट १०)
युधिष्ठिरादिका भीष्मजीके पास जाना और भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
करते हुए भीष्मजीका प्राणत्याग करना
स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञां
ऋतमधि कर्तुमवप्लुतो रथस्थः ।
धृतरथ चरणोऽभ्ययात् चलद्गुः
हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीयः ॥ ३७ ॥
शितविशिखहतो विशीर्णदंशः
क्षतजपरिप्लुत आततायिनो मे ।
प्रसभं अभिससार मद्वधार्थं
स भवतु मे भगवान् गतिर्मुकुन्दः ॥ ३८ ॥
(भीष्मजी कहते हैं) मैंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं श्रीकृष्णको शस्त्र ग्रहण कराकर छोङूँगा; उसे सत्य एवं ऊँची करनेके लिये उन्होंने अपनी शस्त्र ग्रहण न करनेकी प्रतिज्ञा तोड़ दी। उस समय वे रथसे नीचे कूद पड़े और सिंह जैसे हाथीको मारनेके लिये उसपर टूट पड़ता है, वैसे ही रथका पहिया लेकर मुझपर झपट पड़े। उस समय वे इतने वेगसे दौड़े कि उनके कंधेका दुपट्टा गिर गया और पृथ्वी काँपने लगी ॥ ३७ ॥ मुझ आततायीने तीखे बाण मार-मारकर उनके शरीरका कवच तोड़ डाला था, जिससे सारा शरीर लहूलुहान हो रहा था, अर्जुनके रोकनेपर भी वे बलपूर्वक मुझे मारनेके लिये मेरी ओर दौड़े आ रहे थे। वे ही भगवान् श्रीकृष्ण, जो ऐसा करते हुए भी मेरे प्रति अनुग्रह और भक्तवत्सलतासे परिपूर्ण थे, मेरी एकमात्र गति हों—आश्रय हों ॥ ३८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
जय श्री कृष्णा
जवाब देंहटाएं🌹💖🌺🥀जय हो द्वारकानाथ गोविंद 🙏💟🙏 जय श्री हरि:🙏🙏🙏 ॐ श्री परमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण