बुधवार, 29 मई 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) अठारहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 # श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

अठारहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

नन्द, उपनन्द और वृषभानुओंका परिचय तथा श्रीकृष्णकी मृद्भक्षण-लीला

 

श्रीनारद उवाच -
गोपीगृहेषु विचरन् नवनीचौरः
श्यामो मनोहरवपुर्नवकंजनेत्रः ।
श्रीबालचंद्र इव वृद्धिगतो नराणां
चित्तं हरन्निव चकार व्रजे च शोभाम् ॥१॥
श्रीनंदनंदनमतीव चलं गृहीत्वा
गेहं निधाय मुमुहुर्नवनंदगोपाः ।
सत्कंदुकैश्च सततं परिपालयंते
गायंत ऊर्जितसुखा न जगत्स्मरन्तः ॥२॥


राजोवाच -
नवोपनंदनामानि वद देवऋषे मम ।
अहोभाग्यं तु येषां वै ते पूर्वं क इहागताः ॥३॥
तथा षड्वृषभानूनां कर्माणि मंगलानि च ।


श्रीनारद उवाच -
गयश्च विमलः श्रीशः श्रीधरो मंगलायनः ॥४॥
मंगलो रंगवल्लीशो रङ्गोजिर्देवनायकः ।
नवनंदाश्च कथिता बभूवुर्गोकुले व्रजे ॥५॥
वीतिहोत्रोऽग्निभुक् साम्बः श्रीकरो गोपतिः श्रुतः ।
व्रजेशः पावनः शांत उपनंदाः प्रकीर्तिताः ॥६॥
नीतिविन्मार्गदः शुक्लः पतंगो दिव्यवाहनः ।
गोपेष्टश्च व्रजे राजञ्जाताः षड्वृषभानवः ॥७॥
गोलोके कृष्णचंद्रस्य निकुंजद्वारमाश्रिताः ।
वेत्रहस्ताः श्यामलांगा नवनंदाश्च ते स्मृताः ॥८॥
निकुंजे कोटिशो गावस्तासां पालनतत्पराः ।
वंशीमयूरपक्षाढ्या उपनंदाश्च ते स्मृताः ॥९॥
निकुंजदुर्गरक्षायां दंडपाशधराः स्थिताः ।
षड्‌द्वारमास्थिताः षड् वै कथिता वृषभानवः ॥१०॥
श्रीकृष्णस्येच्छया सर्वे गोलोकादागता भुवि ।
तेषां प्रभावं वक्तुं हि न समर्थश्चतुर्मुखः ॥११॥
अहं किमु वदिष्यामि तेषां भाग्यं महोदयम् ।
येषामारोहमास्थाय बालकेलिर्बभौ हरिः ॥१२॥

श्रीनारदजी कहते हैं — मिथिलेश्वर ! गोपाङ्गनाओंके घरोंमें विचरते और माखन चोरीकी लीला करते हुए नवकंज लोचन मनोहर श्याम- रूपधारी श्रीकृष्ण बालचन्द्रकी भाँति बढ़ते और लोगोंके चित्त चुराते हुए-से व्रजमें अद्भुत शोभाका विस्तार करने लगे। नौ नन्द नामके गोप अत्यन्त चञ्चल श्रीनन्दनन्दनको पकड़कर अपने घर ले जाते और वहाँ बिठाकर उनकी रूपमाधुरीका आस्वादन करते हुए मोहित हो जाते थे । वे उन्हें अच्छी-अच्छी गेंदें देकर खेलाते, उनका लालन-पालन करते, उनकी लीलाएँ गाते और बढ़े हुए आनन्दमें निमग्न हो सारे जगत्‌ को भूल जाते थे ॥ १-२ ॥

 

राजा ने पूछा- देवर्षे ! आप मुझसे नौ उपनन्दोंके नाम बताइये। वे सब बड़े सौभाग्यशाली थे। उनके पूर्वजन्मका परिचय दीजिये । वे पहले कौन थे, जो इस भूतलपर अवतीर्ण हुए ? उपनन्दोंके साथ ही छः वृषभानुओंके भी मङ्गलमय कर्मोंका वर्णन कीजिये ॥ ३ ॥

 

श्रीनारदजीने कहा- गय, विमल, श्रीश, श्रीधर, मङ्गलायन, मङ्गल, रङ्गवल्लीश, रङ्गोजि तथा देवनायक – ये 'नौ नन्द' कहे गये हैं, जो व्रजके गोकुलमें उत्पन्न हुए थे। वीतिहोत्र, अग्निभुक्, साम्ब, श्रीवर, गोपति, श्रुत, व्रजेश, पावन तथा शान्त – ये 'उपनन्द' कहे गये हैं ।। ४-६ ॥

 

हे राजन् ! नीतिवित्, मार्गद, शुक्ल, पतंग, दिव्यवाहन और गोपेष्ट – ये छः 'वृषभानु' हैं, जिन्होंने व्रजमें जन्म धारण किया था। जो गोलोकधाममें श्रीकृष्णचन्द्रके निकुञ्जद्वारपर रहकर हाथमें बेंत लिये पहरा देते थे, वे श्याम अङ्गवाले गोप व्रजमें 'नौ नन्द' के नामसे विख्यात हुए । निकुञ्जमें जो करोड़ों गायें हैं, उनके पालनमें तत्पर, मोरपंख और मुरली धारण करनेवाले गोप यहाँ 'उपनन्द' कहे गये हैं। निकुञ्ज- दुर्ग की रक्षा के लिये जो दण्ड और पाश धारण किये उसके छहों द्वारोंपर रहा करते हैं, वे ही छः गोप यहाँ 'छः वृषभानु' कहलाये ।। ९-१० ॥

 

श्रीकृष्ण की इच्छा से ही वे सब लोग गोलोक से भूतलपर उतरे हैं। उनके प्रभाव का वर्णन करनेमें चतुर्मुख ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं, फिर मैं उनके महान् अभ्युदयशाली सौभाग्य का कैसे वर्णन कर सकूँगा, जिनकी गोद में बैठकर बाल-क्रीडापरायण श्रीहरि सदा सुशोभित होते थे । ११ - १२ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय नंद नंदन जय गोपाल
    गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो

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