गुरुवार, 30 मई 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) अठारहवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

अठारहवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

नन्द, उपनन्द और वृषभानुओंका परिचय तथा श्रीकृष्णकी मृद्भक्षण-लीला

 

एकदा यमुनातीरे मृत्कृष्णेनावलीढिता ।
यशोदां बालकाः प्राहुरत्ति बालो मृदं तव ॥१३॥
बलभद्रे च वदति तदा सा नंदगेहिनी ।
करे गृहीत्वा स्वसुतं भीरुनेत्रमुवाच ह ॥१४॥


श्रीयशोदा उवाच -
कस्मान्मृदं भक्षितवान् महाज्ञ
भवान्वयस्याश्च वदंति साक्षात् ।
ज्यायान्बलोऽयं वदति प्रसिद्धं
मा एवमर्थं न जहाति नेष्टम् ॥१५॥


श्रीभगवानुवाच -
सर्वे मृषावादरथा व्रजार्भका
मातर्मया क्वापि न मृत्प्रभक्षिता ।
यदा समीचीनमनेन वाक्पथं
तदा मुखं पश्य मदीयमंजसा ॥१६॥


श्रीनारद उवाच -
अथ गोपी बालकस्य पश्यंती सुंदरं मुखम् ।
प्रसारितं च ददृशे ब्रह्मांडं रचितं गुणैः ॥१७॥
सप्तद्वीपान्सप्त सिंधून्सखंडान्सगिरीन्दृढान् ।
आब्रह्मलोकाँल्लोकाँस्त्रीन्स्वात्मभिः सव्रजैः सह ॥१८॥
दृष्ट्वा निमीलिताक्षी सा भूत्वा श्रीयमुनातटे ।
बालोऽयं मे हरिः साक्षादिति ज्ञानमयी ह्यभूत् ॥१९॥
तदा जहास श्रीकृष्णो मोहयन्निव मायया ।
यशोदा वैभवं दृष्टं न सस्मार गतस्मृतिः ॥२०॥

एक दिनकी बात है, यमुनाके तटपर श्रीकृष्णने मिट्टीका आस्वादन किया। यह देख बालकोंने यशोदाजीके पास आकर कहा – 'अरी मैया ! तुम्हारा लाला तो मिट्टी खाता है।' बलभद्रजीने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दी । तब नन्दरानी ने अपने पुत्र का हाथ पकड़ लिया। बालक के नेत्र भयभीत से हो उठे। मैया ने उससे कहा ।। १३-१४ ॥

 

यशोदाजीने पूछा- ओ महामूढ़ ! तूने क्यों मिट्टी खायी ! तेरे ये साथी भी बता रहे हैं और साक्षात् बड़े भैया ये बलराम भी यही बात कहते हैं कि 'माँ ! मना करने पर भी यह मिट्टी खाना नहीं छोड़ता । इसे मिट्टी बड़ी प्यारी लगती है' ॥ १५ ॥

 

श्रीभगवान् ने कहा - मैया ! व्रजके ये सारे बालक झूठ बोल रहे हैं। मैंने कहीं भी मिट्टी नहीं खायी । यदि तुम्हें मेरी बातपर विश्वास न हो तो मेरा मुँह देख लो ॥ १६ ॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तब गोपी यशोदाने बालकका सुन्दर मुख खोलकर देखा । यशोदाको उसके भीतर तीनों गुणोंद्वारा रचित और सब ओर फैला हुआ ब्रह्माण्ड दिखायी दिया। सातों द्वीप, सात समुद्र, भारत आदि वर्ष, सुदृढ़ पर्वत, ब्रह्मलोक-पर्यन्त तीनों लोक तथा समस्त व्रज- मण्डलसहित अपने शरीरको भी यशोदा ने अपने पुत्रके मुखमें देखा ।। १७-१८ ॥

 

यह देखते ही उन्होंने आँखें बंद कर लीं और श्रीयमुनाजीके तटपर बैठकर सोचने लगीं - 'यह मेरा बालक साक्षात् श्रीनारायण है।' इस तरह वे ज्ञाननिष्ठ हो गयीं। तब श्रीकृष्ण उन्हें अपनी मायासे मोहित-सी करते हुए हँसने लगे । यशोदाजी की स्मरण शक्ति विलुप्त हो गयी। उन्होंने श्रीकृष्ण का जो वैभव देखा था, वह सब वे तत्काल भूल गयीं ॥ १९ - २० ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें गोलोकखण्डके अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवादमें 'ब्रह्माण्डदर्शन' नामक अठाहरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌸🌾जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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