शनिवार, 18 मई 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) पंद्रहवाँ अध्याय (पोस्ट 05)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

पंद्रहवाँ अध्याय  (पोस्ट 05)

 

यशोदाद्वारा श्रीकृष्णके मुखमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका दर्शन; नन्द और यशोदाके पूर्व- पुण्य का परिचय; गर्गाचार्यका नन्द भवनमें जाकर बलराम और श्रीकृष्णके नामकरण - संस्कार करना तथा वृषभानुके यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्णके नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्यका ज्ञान कराना

 

श्रीगर्ग उवाच -
अहं न कारयिष्यामि विवाहमनयोर्नृप ।
तयोर्विवाहो भविता भांडीरे यमुनातटे ॥६०॥
वृंदावनसमीपे च निर्जने सुंदरस्थले ।
परमेष्ठी समागत्य विवाहं कारयिष्यति ॥६१॥
तस्माद्‌राधां गोपवर विद्ध्यर्धांगीं वरस्य च ।
लोके चूडामणिः साक्षाद्‌राज्ञीं गोलोकमंदिरे ॥६२॥
यूयं सर्वेऽपि गोपाला गोलोकादागता भुवि ।
तथा गोपीगणा गोपा गोलोके राधिकेच्छया ॥६३॥
यद्दर्शनं दुर्लभमेव दुर्घटं
देवैश्च यज्ञैर्न च जन्मभिः किमु ।
सविग्रहां तां तव मंदिराजिरे
लक्ष्यंति गुप्तां बहुगोपगोपिकाः ॥६४॥


श्रीनारद उवाच -
तदा च विस्मितौ राजन् दंपती हर्षितौ परम् ।
राधाकृष्णप्रभावं च श्रुत्वा श्रीगर्गमूचतुः ॥६५॥


दंपती ऊचतुः -
राधाशब्दस्य हे ब्रह्मन् व्याख्यानं वद तत्त्वतः ।
त्वत्तो न संशयच्छेत्ता कोऽपि भूमौ महामुने ॥६६॥


श्रीगर्ग उवाच -
सामवेदस्य भावार्थं गंधमादनपर्वते ।
शिष्येणापि मया तत्र नारायणमुखाच्छ्रुतम् ॥६७॥
रमया तु रकारः स्यादाकारस्त्वादिगोपिका ।
धकारो धरया हि स्यादाकारो विरजा नदी ॥६८॥
श्रीकृष्णस्य परस्यापि चतुर्द्धा तेजसोऽभवत् ।
लीलाभूः श्रीश्च विरजा चतस्रः पत्‍न्य एव हि ॥६९॥
संप्रलीनाश्च ताः सर्वा राधायां कुंजमंदिरे ।
परिपूर्णतमां राधां तस्मादाहुर्मनिषिणः ॥७०॥


श्रीनारद उवाच -
राधाकृष्णेति हे गोप ये जपंति पुनः पुनः ।
चतुष्पदार्थं किं तेषां साक्षात्कृष्णोऽपि लभ्यते ॥७१॥
तदातिविस्मितो राजन् वृषभानुः प्रियायुतः ।
राधाकृष्णप्रभावं तं ज्ञात्वाऽऽनंदमयो ह्यभूत् ॥७२॥
इत्थं गर्गो ज्ञानिवरः पूजितो वृषभानुना ।
जगाम स्वगृहं साक्षान्मुनीन्द्रः सर्ववित्कविः ॥७३॥

श्रीगर्गजीने कहा- राजन् ! श्रीराधा और श्रीकृष्णका पाणिग्रहण-संस्कार मैं नहीं कराऊँगा । यमुनाके तटपर भाण्डीर वनमें इनका विवाह होगा । वृन्दावनके निकट जनशून्य सुरम्य स्थानमें स्वयं श्रीब्रह्माजी पधारकर इन दोनोंका विवाह करायेंगे । गोपवर ! तुम इन श्रीराधिकाको भगवान् श्रीकृष्णकी वल्लभा समझो। संसारमें राजाओंके शिरोमणि तुम हो और लोकोंका शिरोमणि गोलोकधाम है। तुम सम्पूर्ण गोप गोलोकधामसे ही इस भूमण्डलपर आये हो। वैसे ही समस्त गोपियाँ भी श्रीराधिकाजीकी आज्ञा मानकर गोलोकसे आयी हैं। बड़े-बड़े यज्ञ करनेपर देवताओं- को भी अनेक जन्मों तक जिनकी झाँकी सुलभ नहीं होती, उनके लिये भी जिनका दर्शन दुर्घट है, वे साक्षात् श्रीराधिका जी तुम्हारे मन्दिर के आँगन में गुप्तरूप से विराज रही हैं और बहुसंख्यक गोप और गोपियाँ उनका साक्षात् दर्शन करती हैं ।। ६० - ६४ ।।

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! श्रीराधिकाजी और भगवान् श्रीकृष्णका यह प्रशंसनीय प्रभाव सुनकर श्रीवृषभानु और कीर्ति — दोनों अत्यन्त विस्मित तथा आनन्दसे आह्लादित हो उठे और गर्गजीसे कहने लगे ॥ ६५ ॥

दम्पती बोले- ब्रह्मन् ! 'राधा' शब्दकी तात्त्विक व्याख्या बताइये। महामुने ! इस भूतलपर मन के संदेह को दूर करने वाला आपके समान दूसरा कोई नहीं है ॥ ६६ ॥

श्रीगर्गजीने कहा- एक समयकी बात है, मैं गन्धमादन पर्वतपर गया। साथमें शिष्यवर्ग भी थे। वहीं भगवान् नारायण के श्रीमुख से मैंने सामवेद का यह सारांश सुना है। 'रकार' से रमा का, 'आकार' से गोपिकाओं का, 'धकार' से धराका तथा 'आकार' से विरजा नदीका ग्रहण होता है । परमात्मा भगवान् श्रीकृष्णका सर्वोत्कृष्ट तेज चार रूपोंमें विभक्त हुआ । लीला, भू, श्री और विरजा ये चार पत्नियाँ ही उनका चतुर्विध तेज हैं। ये सब की सब कुञ्जभवनमें जाकर श्रीराधिकाजी के श्रीविग्रह में लीन हो गयीं। इसीलिये विज्ञजन श्रीराधाको 'परिपूर्णतमा' कहते हैं । गोप ! जो मनुष्य बारंबार 'राधाकृष्ण' के इस नामका उच्चारण करते हैं, उन्हें चारों पदार्थ तो क्या, साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण भी सुलभ हो जाते हैं  ॥ ६७-७१ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! उस समय भार्या- सहित श्रीवृषभानुके आश्चर्यकी सीमा न रही। श्रीराधा- कृष्णके दिव्य प्रभावको जानकर वे आनन्दके मूर्तिमान् विग्रह बन गये । इस प्रकार श्रीवृषभानुने ज्ञानिशिरोमणि श्रीगर्गजीकी पूजा की। तब वे सर्वज्ञ एवं त्रिकालदर्शी मुनीन्द्र गर्ग स्वयं अपने स्थानको सिधारे ।। ७२-७३ ।।

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें गोलोकखण्डके अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवादमें 'नन्द-पत्नीका विश्वरूपदर्शन तथा श्रीकृष्ण-बलरामका नामकरण संस्कार' नामक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १५ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🌺🥀जय श्री राधे कृष्ण🙏🥀🙏 ॐ श्री परमात्मने नमः 🙏🥀🙏 राधे राधे जय श्री राधे 🙏
    कृष्ण कृष्ण जय श्री कृष्ण 🙏🥀🙏

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