शनिवार, 4 मई 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध तेरहवां अध्याय..(पोस्ट..०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०६)

विदुरजी के उपदेश से धृतराष्ट्र और 
गान्धारीका वनमें जाना

सूत उवाच ।
कृपया स्नेहवैक्लव्यात् सूतो विरहकर्शितः ।
आत्मेश्वरमचक्षाणो न प्रत्याहातिपीडितः ॥ ३४ ॥
विमृज्याश्रूणि पाणिभ्यां विष्टभ्यात्मानमात्मना ।
अजातशत्रुं प्रत्यूचे प्रभोः पादावनुस्मरन् ॥ ३५ ॥

सञ्जय उवाच ।
नाहं वेद व्यवसितं पित्रोर्वः कुलनन्दन ।
गान्धार्या वा महाबाहो मुषितोऽस्मि महात्मभिः ॥ ३६ ॥
अथाजगाम भगवान् नारदः सहतुम्बुरुः ।
प्रत्युत्थायाभिवाद्याह सानुजोऽभ्यर्चयन् मुनिम् ॥ ३७ ॥

युधिष्ठिर उवाच ।
नाहं वेद गतिं पित्रोः भगवन् क्व गतावितः ।
अम्बा वा हतपुत्रार्ता क्व गता च तपस्विनी ॥ ३८ ॥
कर्णधार इवापारे भगवान् पारदर्शकः ।
अथाबभाषे भगवान् नारदो मुनिसत्तमः ॥ ३९ ॥

नारद उवाच ।
मा कञ्चन शुचो राजन् यदीश्वरवशं जगत् ।
लोकाः सपाला यस्येमे वहन्ति बलिमीशितुः ।
स संयुनक्ति भूतानि स एव वियुनक्ति च ॥ ४० ॥

सूतजी कहते हैं—सञ्जय अपने स्वामी धृतराष्ट्र को न पाकर कृपा और स्नेह की विकलतासे अत्यन्त पीडि़त और विरहातुर हो रहे थे। वे युधिष्ठिरको कुछ उत्तर न दे सके ॥ ३४ ॥ फिर धीरे-धीरे बुद्धिके द्वारा उन्होंने अपने चित्तको स्थिर किया, हाथों से आँखों के आँसू पोंछे और अपने स्वामी धृतराष्ट्रके चरणोंका स्मरण करते हुए युधिष्ठिरसे कहा ॥ ३५ ॥
सञ्जय बोले—कुलनन्दन ! मुझे आपके दोनों चाचा और गान्धारीके सङ्कल्पका कुछ भी पता नहीं है। महाबाहो ! मुझे तो उन महात्माओंने ठग लिया ॥ ३६ ॥ सञ्जय इस प्रकार कह ही रहे थे कि तुम्बुरु के साथ देवर्षि नारदजी वहाँ आ पहुँचे। महाराज युधिष्ठिरने भाइयोंसहित उठकर उन्हें प्रणाम किया और उनका सम्मान करते हुए बोले— ॥ ३७ ॥
युधिष्ठिरने कहा—‘भगवन् ! मुझे अपने दोनों चाचाओं का पता नहीं लग रहा है; न जाने वे दोनों और पुत्र-शोकसे व्याकुल तपस्विनी माता गान्धारी यहाँसे कहाँ चले गये ॥ ३८ ॥ भगवन् ! अपार समुद्रमें कर्णधार के समान आप ही हमारे पारदर्शक हैं।’ तब भगवान्‌के परमभक्त भगवन्मय देवर्षि नारदने कहा— ॥ ३९ ॥ ‘धर्मराज ! तुम किसीके लिये शोक मत करो क्योंकि यह सारा जगत् ईश्वरके वशमें है। सारे लोक और लोकपाल विवश होकर ईश्वरकी ही आज्ञाका पालन कर रहे हैं। वही एक प्राणीको दूसरेसे मिलाता है और वही उन्हें अलग करता है ॥ ४० ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌺🥀🌸🪔जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏🥀🙏 जय श्री कृष्ण 🙏🙏

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