रविवार, 5 मई 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध तेरहवां अध्याय..(पोस्ट..०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०७)

विदुरजी के उपदेश से धृतराष्ट्र और 
गान्धारीका वनमें जाना

यथा गावो नसि प्रोताः तन्त्यां बद्धाः स्वदामभिः ।
वाक्तन्त्यां नामभिर्बद्धा वहन्ति बलिमीशितुः ॥ ४१ ॥
यथा क्रीडोपस्कराणां संयोगविगमाविह ।
इच्छया क्रीडितुः स्यातां तथैवेशेच्छया नृणाम् ॥ ४२ ॥
यन्मन्यसे ध्रुवं लोकं अध्रुवं वा न चोभयम् ।
सर्वथा न हि शोच्यास्ते स्नेहात् अन्यत्र मोहजात् ॥ ४३ ॥
तस्माज्जह्यङ्‌ग वैक्लव्यं अज्ञानकृतमात्मनः ।
कथं त्वनाथाः कृपणा वर्तेरंस्ते च मां विना ॥ ४४ ॥
कालकर्म गुणाधीनो देहोऽयं पाञ्चभौतिकः ।
कथमन्यांस्तु गोपायेत् सर्पग्रस्तो यथा परम् ॥ ४५ ॥
अहस्तानि सहस्तानां अपदानि चतुष्पदाम् ।
फल्गूनि तत्र महतां जीवो जीवस्य जीवनम् ॥ ४६ ॥
तदिदं भगवान् राजन् एक आत्मात्मनां स्वदृक् ।
अन्तरोऽनन्तरो भाति पश्य तं माययोरुधा ॥ ४७ ॥

(देवर्षि नारद युधिष्ठिर से कहते हैं)  जैसे बैल बड़ी रस्सी में बँधे और छोटी रस्सी से नथे रहकर अपने स्वामीका भार ढोते हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी वर्णाश्रमादि अनेक प्रकारके नामोंसे वेदरूप रस्सीमें बँधकर ईश्वरकी ही आज्ञाका अनुसरण करते हैं ॥ ४१ ॥ जैसे संसारमें खिलाड़ीकी इच्छासे ही खिलौनोंका संयोग और वियोग होता है, वैसे ही भगवान्‌की इच्छासे ही मनुष्योंका मिलना-बिछुडऩा होता है ॥ ४२ ॥ तुम लोगोंको जीवरूपसे नित्य मानो या देहरूपसे अनित्य अथवा जडरूपसे अनित्य और चेतन-रूपसे नित्य अथवा शुद्धब्रह्मरूपमें नित्य- अनित्य कुछ भी न मानो—किसी भी अवस्थामें मोहजन्य आसक्तिके अतिरिक्त वे शोक करने योग्य नहीं हैं ॥ ४३ ॥ इसलिये धर्मराज ! वे दीन-दुखी चाचा-चाची असहाय अवस्थामें मेरे बिना कैसे रहेंगे, इस अज्ञानजन्य मनकी विकलताको छोड़ दो ॥ ४४ ॥ यह पाञ्चभौतिक शरीर काल, कर्म और गुणोंके वशमें है। अजगरके मुँहमें पड़े हुए पुरुषके समान यह पराधीन शरीर दूसरोंकी रक्षा ही क्या कर सकता है ॥ ४५ ॥ हाथवालोंके बिना हाथवाले, चार पैरवाले पशुओंके बिना पैरवाले (तृणादि) और उनमें भी बड़े जीवोंके छोटे जीव आहार हैं। इस प्रकार एक जीव दूसरे जीव के जीवन का कारण हो रहा है ॥ ४६ ॥ इन समस्त रूपों में जीवों के बाहर और भीतर वही एक स्वयंप्रकाश भगवान्‌, जो सम्पूर्ण आत्माओंके आत्मा हैं, मायाके द्वारा अनेकों प्रकारसे प्रकट हो रहे हैं। तुम केवल उन्हींको देखो ॥ ४७ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌼🕉️🥀🪔जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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