सोमवार, 22 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) पंद्रहवाँ अध्याय ( पोस्ट 01 )


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

पंद्रहवाँ अध्याय ( पोस्ट 01 )

 

श्रीराधाका गवाक्षमार्गसे श्रीकृष्णके रूपका दर्शन करके प्रेम-विह्वल होना; ललिताका श्रीकृष्णसे राधाकी दशाका वर्णन करना और उनकी आज्ञाके अनुसार लौटकर श्रीराधाको श्रीकृष्ण-प्रीत्यर्थ सत्कर्म करनेकी प्रेरणा देना

 

नारद उवाच

इदं मया ते कथितं कालियस्यापि मर्दनम् ।

श्रीकृष्णचरितं पुण्यं कि भूयः श्रोतुमिच्छसि ॥ १

 

बहुलाश्व उवाच

श्रीकृष्णस्य कथां श्रुत्वा भक्तस्तुतिं न याति हि ।

यथामरः सुधां पीत्वा यथालिः पद्मकर्णिकाम् ॥ २

रासं कृत्वा हरौ जाते शिशुरूपे महात्मनि ।

भाण्डीरे देववागाह श्रीराधां खिन्नमानसाम् ॥ ३

शोचं मा कुरु कल्याणि वृन्दारण्ये मनोहरे ।

मनोरथस्ते भविता श्रीकृष्णेन महात्मना ॥ ४

इत्थं देवगिरा प्रोक्तो मनोरथमहार्णवः ।

कथं बभूव भगवान् वृन्दारण्ये मनोहरे ॥ ५

कथं श्रीराधया सार्द्ध रासक्रीड़ां मनोहराम्.

चकार वृन्दारण्ये परिपूर्णतमः स्वयम् ॥ ६

 

नारद उवाच

साधु पृष्ट त्वया राजन् भगवच्चरितं शुभम् ।

गुप्तं वदामि देवैश्च लीलाख्यानं मनोहरम् ॥ ७

एकदा मुख्यसख्यौ द्वे विशाखाललिते शुभे ।

वृषभानोगृ हैं प्राप्य राधां जगद्तू रहः ॥ ८

 

सख्यावूचतुः ।

यं चिन्तयसि राधे त्वं यद्गुणं वदसि स्वतः ।

सोऽपि नित्यं समायाति वृषभानुपुरेऽर्भकैः ॥ ६

प्रेक्षणीयस्त्वया राधे दर्शनीयोऽतिसुन्दरः ।

पश्चिमायां निशीथिन्यां गोचारणविनिर्गतः ॥ १०

 

राधोवाच

लिखित्वा तस्य चित्रं हि दर्शयाशु मनाहरम् |

तहि तत्प्रेक्षणं पश्चात् करिष्यामि न संशयः ॥ ११

 

नारदजी कहते हैं— राजन् ! यह मैंने तुमसे कालिय-मर्दनरूप पवित्र श्रीकृष्ण चरित्र कहा । अब और क्या सुनना चाहते हो ? ॥ १ ॥

बहुलाश्व बोले- देवर्षे ! जैसे देवता अमृत पीकर तथा भ्रमर कमल-कर्णिकाका रस लेकर तृप्त नहीं होते, उसी प्रकार श्रीकृष्णकी कथा सुनकर कोई भी भक्त तृप्त नहीं होता (वह उसे अधिकाधिक सुनना चाहता है) । जब शिशुरूपधारी परमात्मा श्रीकृष्ण रास करनेके लिये भाण्डीरवनमें गये और उनका यह लघुरूप देखकर श्रीराधा मन-ही-मन खेद करने लगीं, तब देववाणीने कहा- 'कल्याणि ! सोच न करो। मनोहर वृन्दावनमें महात्मा श्रीकृष्णके द्वारा तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।' देववाणीद्वारा इस प्रकार कहा गया वह मनोरथका महासागर किस तरह पूर्ण हुआ और उस मनोहर वृन्दावनमें भगवान् श्रीकृष्ण किस रूपमें प्रकट हुए? उस वृन्दा - विपिनमें साक्षात् परिपूर्णतम भगवान्ने श्रीराधाके साथ मनोहर रास- क्रीड़ा किस प्रकार की ? ॥ २-६ ॥

नारदजीने कहा- राजन् ! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया। मैं उस मङ्गलमय भगवच्चरित्रका, उस मनोहर लीलाख्यानका, जो देवताओंको भी पूर्णतया ज्ञात नहीं है, वर्णन करता हूँ । एक दिनकी बात है, श्रीराधाकी दो प्रधान सखियाँ, शुभस्वरूपा ललिता और विशाखा, वृषभानुके घर पहुँचकर एकान्तमें श्रीराधासे मिलीं ॥ ७-८ ॥

सखियाँ बोलीं- राधे ! तुम जिनका चिन्तन करती हो और स्वतः जिनके गुण गाती रहती हो, वे भी प्रतिदिन ग्वाल-बालोंके साथ वृषभानुपुरमें आते हैं। राधे ! तुम्हें रातके पिछले पहरमें, जब वे गो-चारणके लिये निकलते हैं, उनका दर्शन करना चाहिये । वे बड़े सुन्दर हैं ।।९-१०॥

राधा बोलीं- पहले उनका मनोहर चित्र बनाकर तुम शीघ्र मुझे दिखाओ, उसके बाद मैं उनका दर्शन करूँगी — इसमें संशय नहीं है ॥ ११ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🪷💖🌺🪷जय श्रीहरि:🙏🏼🙏🏼
    गोविंदाय नमो नमः
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे राधे जय श्री कृष्ण 🌼🍂🌹🥀

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