॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-तीसरा अध्याय..(पोस्ट०३)
कामनाओं के अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना तथा भगवद्भक्ति के प्राधान्य का निरूपण
एतावानेव यजतां इह निःश्रेयसोदयः ।
भगवत्यचलो भावो यद्भागवतसङ्गतः ॥ ११ ॥
ज्ञानं यदाप्रतिनिवृत्तगुणोर्मिचक्रम् ।
आत्मप्रसाद उत यत्र गुणेष्वसङ्गः ।
कैवल्यसम्मतपथस्त्वथ भक्तियोगः ।
को निर्वृतो हरिकथासु रतिं न कुर्यात् ॥ १२ ॥
शौनक उवाच ।
इत्यभिव्याहृतं राजा निशम्य भरतर्षभः ।
किमन्यत् पृष्टवान् भूयो वैयासकिं ऋषिं कविम् ॥ १३ ॥
एतद् शुश्रूषतां विद्वन् सूत नोऽर्हसि भाषितुम् ।
कथा हरिकथोदर्काः सतां स्युः सदसि ध्रुवम् ॥ १४ ॥
जितने भी उपासक हैं, उनका सबसे बड़ा हित इसीमें है कि वे भगवान्के प्रेमी भक्तोंका सङ्ग करके भगवान् में अविचल प्रेम प्राप्त कर लें ॥ ११ ॥ ऐसे पुरुषोंके सत्सङ्ग में जो भगवान् की लीला-कथाएँ होती हैं, उनसे उस दुर्लभ ज्ञानकी प्राप्ति होती है, जिससे संसार-सागरकी त्रिगुणमयी तरङ्गमालाओंके थपेड़े शान्त हो जाते हैं, हृदय शुद्ध होकर आनन्दका अनुभव होने लगता है, इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति नहीं रहती, कैवल्यमोक्ष का सर्वसम्मत मार्ग भक्तियोग प्राप्त हो जाता है। भगवान् की ऐसी रसमयी कथाओंका चस्का लग जानेपर भला कौन ऐसा है, जो उनमें प्रेम न करे ॥ १२ ॥
शौनकजीने कहा—सूतजी ! राजा परीक्षित् ने शुकदेवजीकी यह बात सुनकर उनसे और क्या पूछा ? वे तो सर्वज्ञ होनेके साथ-ही-साथ मधुर वर्णन करनेमें भी बड़े निपुण थे ॥ १३ ॥ सूतजी ! आप तो सब कुछ जानते हैं, हमलोग उनकी वह बातचीत बड़े प्रेमसे सुनना चाहते हैं, आप कृपा करके अवश्य सुनाइये। क्योंकि संतोंकी सभामें ऐसी ही बातें होती हैं, जिनका पर्यवसान भगवान् की रसमयी लीला-कथामें ही होता है ॥ १४ ॥
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🌺💖💐💐जय श्री हरि:🙏🏼🙏🏼
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
गोविंद हरे गोपाल हरे जय जय प्रभु दीन दयाल हरे 🙏🏼🌸🌿🙏🏼
हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल 🌸🌿💐🙏🏼🙏🏼
नारायण नारायण नारायण नारायण