॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-तीसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
कामनाओं के अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना तथा भगवद्भक्ति के प्राधान्य का निरूपण
स वै भागवतो राजा पाण्डवेयो महारथः ।
बालक्रीडनकैः क्रीडन् कृष्णक्रीडां य आददे ॥ १५ ॥
वैयासकिश्च भगवान् वासुदेवपरायणः ।
उरुगायगुणोदाराः सतां स्युर्हि समागमे ॥ १६ ॥
आयुर्हरति वै पुंसां उद्यन्नस्तं च यन्नसौ ।
तस्यर्ते यत्क्षणो नीत उत्तमश्लोकवार्तया ॥ १७ ॥
तरवः किं न जीवन्ति भस्त्राः किं न श्वसन्त्युत ।
न खादन्ति न मेहन्ति किं ग्रामपशवोऽपरे ॥ १८ ॥
श्वविड्वराहोष्ट्रखरैः संस्तुतः पुरुषः पशुः ।
न यत्कर्णपथोपेतो जातु नाम गदाग्रजः ॥ १९ ॥
पाण्डुनन्दन महारथी राजा परीक्षित् बड़े भगवद्भक्त थे। बाल्यावस्था में खिलौनों से खेलते समय भी वे श्रीकृष्णलीला का ही रस लेते थे ॥ १५ ॥ भगवन्मय श्री शुकदेव जी भी जन्म से ही भगवत्परायण हैं। ऐसे संतों के सत्सङ्ग में भगवान् के मङ्गलमय गुणों की दिव्य चर्चा अवश्य ही हुई होगी ॥ १६ ॥ जिसका समय भगवान् श्रीकृष्णके गुणोंके गान अथवा श्रवणमें व्यतीत हो रहा है, उसके अतिरिक्त सभी मनुष्यों की आयु व्यर्थ जा रही है। ये भगवान् सूर्य प्रतिदिन अपने उदय और अस्तसे उनकी आयु छीनते जा रहे हैं ॥ १७ ॥ क्या वृक्ष नहीं जीते ? क्या लुहार की धौंकनी साँस नहीं लेती ? गाँव के अन्य पालतू पशु क्या मनुष्य-पशु की ही तरह खाते-पीते या मैथुन नहीं करते ? ॥ १८ ॥ जिसके कान में भगवान् श्रीकृष्ण की लीला-कथा कभी नहीं पड़ी, वह नर पशु, कुत्ते, ग्राम-सूकर, ऊँट और गधे से भी गया बीता है ॥१९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
💐🍃🌺💐जय श्री हरि:🙏🏼🙏🏼
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
हरि:शरणम् हरि:शरणम्
हरि:शरणम् !!
नारायण नारायण नारायण नारायण