#
श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(
श्रीवृन्दावनखण्ड )
दसवाँ
अध्याय ( पोस्ट 02 )
यशोदाजी की चिन्ता; नन्दद्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणों को
विविध प्रकार के दान देना; श्रीबलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण
नन्दराज उवाच -
गर्गवाक्यं त्वया सर्वं विस्मृतं हे यशोमति ।
ब्राह्मणानां वचः सत्यं नासत्यं भवति क्वचित् ॥ ११ ॥
तस्माद्दानं प्रकर्तव्यं सर्वारिष्टनिवारणम् ।
दानात्परं तु कल्याणं न भूतं न भविष्यति ॥ १२ ॥
श्रीनारद उवाच -
तदा यशोदा विप्रेभ्यो नवरत्नं महाधनम् ।
स्वालंकारांश्च बालस्य सबलस्य ददौ नृप ॥ १३ ॥
अयुतं वृषभानां च गवां लक्षं मनोहरम् ।
द्विलक्षमन्नभाराणां नन्दो दानं ददौ ततः ॥ १४ ॥
गोपेच्छया
रामकृष्णौ गोपालौ तौ बभूवतुः ।
गाश्चारयन्तौ गोपालैः वयस्यैश्चेरतुर्वने ॥ १५ ॥
अग्रे पृष्ठे तदा गावः चरन्त्यः पार्श्वयोर्द्वयोः ।
श्रीकृष्णस्य बलस्यापि पश्यन्त्यः सुंदरं मुखम् ॥ १६ ॥
घंटामंजीरझंकारं कुर्वन्त्यस्ता इतस्ततः ।
किंकिणीजालसंयुक्ता हेममालालसद्गलाः ॥ १७ ॥
मुक्तागुच्छैर्बर्हिपिच्छैः लसत्पुच्छाच्छकेसराः ।
स्फुरतां नवरत्नानां मालाजालैर्विराजिताः ॥ १८ ॥
शृङ्गयोरन्तरे राजन् शिरोमणिमनोहराः ।
हेमरश्मिप्रभास्फूर्ज्जत् शृङ्गपार्श्वप्रवेष्टनाः ॥ १९ ॥
आरक्ततिलकाः काश्चित्पीतपुच्छारुणांघ्रयः ।
कैलासगिरिसंकाशाः शीलरूपमहागुणाः ॥ २० ॥
सवत्सा मन्दगामिन्य ऊधोभारेण मैथिल ।
कुंडोध्न्यः पाटलाः काश्चित् लक्षन्त्यो भव्यमूर्तयः ॥ २१ ॥
नन्दराज
बोले- यशोदे ! क्या तुम गर्गकी कही हुई सारी बातें भूल गयीं ? ब्राह्मणोंकी कही हुई
बात सदा सत्य होती है, वह कभी असत्य नहीं होतीं । इसलिये समस्त अरिष्टोंका निवारण करनेके
लिये तुम्हें दान करते रहना चाहिये। दानसे बढ़कर कल्याणकारी कृत्य न पहले तो हुआ है
और न आगे होगा ही ।। ११-१२ ॥
नारदजी
कहते हैं— नरेश्वर ! तब यशोदा ने बलराम और श्रीकृष्णके मङ्गल के लिये ब्राह्मणों को बहुमूल्य नवरत्न और अपने
अलंकार दिये । नन्दजी ने उस समय दस हजार बैल, एक लाख मनोहर गायें
तथा दो लाख भार अन्न दान दिये ।। १३-१४ ॥
श्रीनारदजी
पुनः कहते हैं- राजन् ! अब गोपोंकी इच्छासे बलराम और श्रीकृष्ण गोपालक हो गये। अपने
गोपाल मित्रों के साथ गाय चराते हुए वे दोनों भाई वनमें विचरण
करने लगे। उस समय श्रीकृष्ण और बलराम का सुन्दर मुँह निहारती
हुई गौएँ उनके आगे-पीछे और अगल-बगल में विचरती रहती थीं ॥ १५-१६ ॥
उनके
गले में क्षुद्रघण्टिकाओं की माला पहिनायी
गयी थी। सोनेकी मालाएँ भी उनके कण्ठकी शोभा बढ़ाती थीं। उनके पैरों में
घुँघुरू बँधे थे। उनकी पूँछोंके स्वच्छ बालों में लगे हुए मोरपंख
और मोतियों के गुच्छे शोभा दे रहे थे । वे घंटों और नूपुरों के मधुर झंकार को फैलाती हुई इधर-उधर चरती थीं
। चमकते हुए नूतन रत्नों की मालाओं के समूह से उन समस्त गौओं की बड़ी शोभा होती ॥ १७-१८ ॥
राजन्
! उन गौओंके दोनों सींगोंके बीचमें सिरपर मणिमय अलंकार धारण कराये गये थे, जिनसे उनकी
मनोहरता बढ़ गयी थी। सुवर्ण-रश्मियोंकी प्रभासे उनके सींग तथा पार्श्व-प्रवेष्टन (पीठपरकी
झूल) चमकते रहते थे। कुछ गौओं के भाल में
किञ्चित् रक्तवर्ण के तिलक लगे थे। उनकी पूँछें पीले रंग से रँगी गयी थीं और पैरोंके खुर अरुणरागसे रञ्जित थे। बहुत-सी गौएँ
कैलास पर्वत के समान श्वेतवर्णवाली, सुशीला, सुरूपा तथा अत्यन्त
उत्तम गुणों से सम्पन्न थीं। मिथिलेश्वर ! बछड़ेवाली गौएँ अपने
स्तनों के भारसे धीरे-धीरे चलती थीं। कितनों के
थन घड़ोंके बराबर थे। बहुत-सी गौएँ लाल रंगकी थीं। वे सब की सब भव्य - मूर्ति दिखायी
देती थीं ॥ १९-२१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌷💖🥀💐जय श्रीकृष्ण🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गौ माता को श्रद्धा पूर्ण हार्दिक नमन 🙏🥀🙏गोविंद बोलो हरि:गोपाल बोलो🌺राधा रमण हरि गोविंद बोलो 💐🙏
नारायण नारायण नारायण नारायण