॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)
भगवान् के स्थूल और सूक्ष्म रूपों की धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्ति का वर्णन
सत्यां क्षितौ किं कशिपोः प्रयासैः
बाहौ स्वसिद्धे ह्युपबर्हणैः किम् ।
सत्यञ्जलौ किं पुरुधान्नपात्र्या
दिग्वल्कलादौ सति किं दुकूलैः ॥ ४ ॥
चीराणि किं पथि न सन्ति दिशन्ति भिक्षां ।
नैवाङ्घ्रिपाः परभृतः सरितोऽप्यशुष्यन् ।
रुद्धा गुहाः किमजितोऽवति नोपसन्नान् ।
कस्माद् भजंति कवयो धनदुर्मदान्धान् ॥ ५ ॥
एवं स्वचित्ते स्वत एव सिद्ध
आत्मा प्रियोऽर्थो भगवाननंतः ।
तं निर्वृतो नियतार्थो भजेत
संसारहेतूपरमश्च यत्र ॥ ६ ॥
कस्तां त्वनादृत्य परानुचिन्ता-
मृते पशूनसतीं नाम युञ्ज्यात् ।
पश्यञ्जनं पतितं वैतरण्यां
स्वकर्मजान् परितापाञ्जुषाणम् ॥ ७ ॥
जब जमीन पर सोने से काम चल सकता है, तब पलँगके लिये प्रयत्न करनेसे क्या प्रयोजन। जब भुजाएँ अपनेको भगवान् की कृपासे स्वयं ही मिली हुई हैं, तब तकियोंकी क्या आवश्यकता। जब अञ्जलि से काम चल सकता है, तब बहुत-से बर्तन क्यों बटोरें। वृक्षकी छाल पहनकर या वस्त्रहीन रहकर भी यदि जीवन धारण किया जा सकता है तो वस्त्रोंकी क्या आवश्यकता ॥ ४ ॥ पहननेको क्या रास्तोंमें चिथड़े नहीं हैं ? भूख लगनेपर दूसरोंके लिये ही शरीर धारण करनेवाले वृक्ष क्या फल-फूलकी भिक्षा नहीं देते ? जल चाहनेवालोंके लिये नदियाँ क्या बिलकुल सूख गयी हैं ? रहनेके लिये क्या पहाड़ोंकी गुफाएँ बंद कर दी गयी हैं ? अरे भाई ! सब न सही, क्या भगवान् भी अपने शरणगतोंकी रक्षा नहीं करते ? ऐसी स्थितिमें बुद्धिमान् लोग भी धनके नशेमें चूर घमंडी धनियोंकी चापलूसी क्यों करते हैं ? ॥ ५ ॥ इस प्रकार विरक्त हो जानेपर अपने हृदयमें नित्य विराजमान, स्वत:सिद्ध, आत्मस्वरूप, परम प्रियतम, परम सत्य जो अनन्त भगवान् हैं, बड़े प्रेम और आनन्दसे दृढ़ निश्चय करके उन्हींका भजन करे; क्योंकि उनके भजनसे जन्म-मृत्युके चक्करमें डालनेवाले अज्ञानका नाश हो जाता है ॥ ६ ॥ पशुओंकी बात तो अलग है; परन्तु मनुष्योंमें भला ऐसा कौन है, जो लोगोंको इस संसाररूप वैतरणी नदीमें गिरकर अपने कर्मजन्य दु:खोंको भोगते हुए देखकर भी भगवान्का मङ्गलमय चिन्तन नहीं करेगा, इन असत् विषय-भोगोंमें ही अपने चित्तको भटकने देगा ? ॥ ७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
परम् पुनीत परम् वंदनीय श्रीमद्
जवाब देंहटाएंभागवत महापुराण को सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: वंदन 🙏💐🙏💐🙏🙏
🌹💖🌺🥀जय श्री हरि:🙏🙏
ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण