मंगलवार, 9 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) दसवाँ अध्याय ( पोस्ट 03 )

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

दसवाँ अध्याय ( पोस्ट 03 )

 

यशोदाजी की चिन्ता; नन्दद्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणों को विविध प्रकार के दान देना; श्रीबलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण

 

काश्चित्पीता विचित्राश्च श्यामाश्च हरितास्तथा ।
ताम्रा धूम्रा घनश्यामा घनश्यामे गतेक्षणाः ॥ २२ ॥
लघुशृङ्ग्यो दीर्घशृङ्ग्य उच्चशृङ्ग्यो वृषैः सह ।
मृगशृङ्ग्यो वक्रशृङ्ग्यः कपिला मंगलायनाः ॥ २३ ॥
शाद्वलं कोमलं कान्तं वीक्षन्त्योऽपि वने वने ।
कोटिशः कोटिशो गावश्चरन्त्यः कृष्णपार्श्वयोः ॥ २४ ॥
पुण्यं श्रीयमुनातीरं तमालैः श्यामलैर्वनम् ।
नीपैर्निम्बैः कदम्बैश्च प्रवालैः पनसैर्द्रुमैः ॥ २५ ॥
कदलीकोविदाराम्रैः जम्बुबिल्वैर्मनोहरैः ।
अश्वत्थैश्च कपित्थैश्च माधवीभिश्च मंडितम् ॥२६ ॥
बभौ वृन्दावनं दिव्यं वसन्तर्तुमनोहरम् ।
नन्दनं सर्वतोभद्रं क्षिपच्चैत्ररथं वनम् ॥ २७॥
यत्र गोवर्धनो नाम सुनिर्झरदरीयुतः ।
रत्‍नधातुमयः श्रीमान् मन्दारवनसंकुलः ॥ २८ ॥
श्रीखंडबदरीरंभा देवदारुवटैर्वृतः ।
पलाशप्लक्षाशोकैश्चारिष्टार्जुनकदम्बकैः ॥ २९ ॥
पारिजातैः पाटलैश्च चंपकैः परिशोभितः ।
करंजजालकुञ्जाढ्यः श्यामैरिन्द्रयवैर्वृतः ॥ ३० ॥

कोई पीली, कोई चितकबरी, कोई श्यामा, कोई हरी, कोई ताँबेके समान रंगवाली, कोई धूमिलवर्णकी और कोई मेघोंकी घटा-जैसी नीली थीं । उन सबके नेत्र घनश्याम श्रीकृष्णकी ओर लगे रहते थे। किन्हीं गौओं और बैलों के सींग छोटे, किन्हीं के बड़े तथा किन्हीं के ऊँचे थे। कितनों के सींग हिरनों के से थे और कितनोंके टेढ़े-मेढ़े। वे सब गौएँ कपिला तथा मङ्गलकी धाम थीं। वन-वनमें कोमल कमनीय घास खोज खोजकर चरती हुई कोटि-कोटि गौएँ श्रीकृष्णके उभय पार्श्वों में विचरती थीं ॥ २२-२४

 

यमुना का पुण्य- पुलिन तथा उसके निकट श्याम तमालों से सुशोभित वृन्दावन नीप कदम्ब, नीम, अशोक, प्रवाल, कटहल, कदली, कचनार, आम, मनोहर जामुन, बेल, पीपल और कैथ आदि वृक्षों तथा माधवी लताओंसे मण्डित था ॥ २५-२६

 

वसन्त ऋतु के शुभागमन से मनोहर वृन्दावन की दिव्य शोभा हो रही थी। वह देवताओं के नन्दनवन - सा आनन्दप्रद और सर्वतोभद्र वन-सा सब ओरसे मङ्गलकारी जान पड़ता था। उसने (कुबेर के) चैत्ररथ वन की शोभा को तिरस्कृत कर दिया था। वहाँ झरनों और कंदराओं से संयुक्त रत्नधातुमय श्रीमान् गोवर्धन पर्वत शोभा पाता था । वहाँ का वन पारिजात या मन्दार के वृक्षों से व्याप्त था । वह चन्दन, बेर, कदली, देवदार, बरगद, पलास, पाकर, अशोक, अरिष्ट (रीठा), अर्जुन, कदम्ब, पारिजात, पाटल तथा चम्पाके वृक्षोंसे सुशोभित था । श्याम वर्णवाले इन्द्रयव नामक वृक्षोंसे घिरा हुआ वह वन करञ्ज-जालसे विलसित कुञ्जोंसे सम्पन्न था ॥ २७-३०

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

 



1 टिप्पणी:

  1. जय हो वृंदावन धाम की🙏🙏
    जय हो वृंदावन बिहारी लाल
    गोपाल गोविंद 🙏💟🙏
    💐💖🌷💐जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय श्री राधे गोविंद 🙏🙏🪷🌷🥀🪷

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