# श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(
श्रीवृन्दावनखण्ड )
नवाँ
अध्याय ( पोस्ट 07 )
ब्रह्माजीके
द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
अथ कृष्णो वनाच्छीघ्रमानयामास
वत्सकान् ।
यत्रापि पुलिने राजन् गोपानां राजमंडली ॥ ५२ ॥
गोपार्भकाश्च श्रीकृष्णं वत्सैः सार्धं समागतम् ।
क्षणार्धं मेनिरे वीक्ष्य कृष्णमायाविमोहिताः ॥ ५३ ॥
त ऊचुर्वत्सकैः कृष्ण त्वरं त्वं तु समागतः ।
कुरुष्व भोजनं चात्र केनापि न कृतं प्रभो ॥ ५४ ॥
ततश्च विहसन् कृष्णोऽभ्यवहृत्यार्भकैः सह ।
दर्शयामास सर्वेभ्यश्चर्माजगरमेव च ॥ ५५ ॥
सायंकाले सरामस्तु कृष्णो गोपैः परावृतः ।
अग्रे कृत्वा वत्सवृन्दं ह्याजगाम शनैर्व्रजम् ॥ ५६ ॥
गोवत्सकैः सितसितासितपीतवर्णै
रक्तादिधूम्रहरितैर्बहुशीलरूपैः ।
गोपालमण्डलगतं व्रजपालपुत्रं
वन्दे वनात् सुखदगोष्ठकमाव्रजन्तम् ॥
५७ ॥
आनन्दो गोपिकानां तु ह्यासीत्कृष्णस्य दर्शने ।
यासां येन विना राजन् क्षणो युगसमोऽभवत् ॥ ५८ ॥
कृत्वा गोष्ठे पृथग्वत्सान् बालाः स्वं स्वं गृहं गताः ।
जगुश्चाघासुरवधमात्मनो रक्षणं हरे ॥ ५९ ॥
राजन्
! इसके उपरान्त भगवान् श्रीकृष्ण वनसे शीघ्रतापूर्वक गोवत्स एवं गोप- बालकोंको ले आये
और यमुनातटपर जिस स्थान पर गोपमण्डली विराजित थी, उन लोगोंको लेकर उसी
स्थानपर
पहुँचे। गोवत्सोंके साथ लौटे हुए श्रीकृष्णको देखकर उनकी माया से
विमोहित गोपोंने उतने समयको आधे क्षण जैसा समझा। वे लोग गोवत्सोंके साथ आये हुए श्रीकृष्णसे
कहने लगे- 'आप शीघ्रतासे आकर भोजन करें। प्रभो ! आपके चले जानेके कारण किसीने भी भोजन
नहीं किया।' इसके उपरान्त श्रीकृष्णने हँसकर बालकोंके साथ भोजन किया और बालकोंको अजगरका
चमड़ा दिखाया । तदनन्तर बलरामजीके साथ गोपोंसे घिरे हुए श्रीकृष्ण वत्सवृन्दको आगे
करके धीरे-धीरे व्रजको लौट आये ॥ ५२-५६ ॥
सफेद,
चितकबरे, लाल, पीले, धूम्र एवं हरे आदि अनेक रंग और स्वभाववाले गोवत्सोंको आगे करके
धीरे-धीरे सुखद वनसे गोष्ठमें लौटते हुए गोपमण्डली- के बीच स्थित नन्दनन्दनकी मैं वन्दना
करता हूँ । राजन् ! श्रीकृष्णके विरहमें जिनको क्षणभरका समय युगके समान लगता था, उन्हींके
दर्शनसे उन गोपियोंको आनन्द प्राप्त हुआ । बालकोंने अपने-अपने घर जाकर गोष्ठोंमें अलग-अलग
बछड़ोंको बाँधकर अघासुर-वध एवं श्रीहरिद्वारा हुई आत्मरक्षाके वृत्तान्तका वर्णन किया
॥ ५७-५९ ॥
इस
प्रकार श्रीगर्गसंहितामें श्रीवृन्दावनखण्डके अन्तर्गत 'ब्रह्माजीद्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी
स्तुति' नामक नवम अध्याय पूरा हुआ ॥ ९ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌸💐🥀💐🌸जय श्री हरि:🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण
नारायण🌺💟🙏🙏🙏🙏