शनिवार, 3 अगस्त 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

उन्नीसवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

रासक्रीडा का वर्णन

 

बहुलाश्व उवाच -
राधायै दर्शनं दत्त्वा कृत्वा प्रेमपरीक्षणम् ।
अग्रे चकार कां लीलां भगवानात्मलीलया ॥ १ ॥


श्रीनारद उवाच -
माधवो माधवे मासि माधवीभिः समाकुले ।
वृंदावने समारेभे रासं रासेश्वरः स्वयम् ॥ २ ॥
वैशाखमासि पंचम्यां जाते चन्द्रोदये शुभे ।
यमुनोपवने रेमे रासेश्वर्या मनोहरः ॥ ३ ॥
पुरा मैथिल गोलोकाद् भूमिर्या कौ समागता ।
सर्वा बभूव सौवर्णपद्मरागमयी त्वरम् ॥ ४ ॥
वृन्दावनं दिव्यवपुः दधत् कामदुघैर्द्रुमैः ।
माधवीभिर्लताभिश्च प्राक्षिपन्नन्दनन्दनम् ।
रत्‍नसोपानसंपन्ना स्फुरत्सौवर्णतोलिका ।
रराज यमुना राजन् हंसपद्मादिसंकुला ॥ ६ ॥
रत्‍नधातुमयः श्रीमद्‌रत्‍नशृङ्गस्फुरद्द्युतिः ।
सपक्षिगणसंयुक्तो लतापुष्पमनोहरः ॥ ७ ॥
निर्झरैः सुन्दरीभिश्च दरीभिर्भ्रमरीवृतः ।
रेजे गोवर्धनो नाम गिरिराजः करीन्द्रवत् ॥ ८ ॥
सर्वे निकुंजाः परितो रेजुर्दिव्यवपुर्धराः ।
सभामण्डपवीथीभिः प्रांगणस्तंभपंक्तिभिः ॥ ९ ॥
पतत्पताकैर्दिव्याभैः सौवर्णैः कलशैर्नृप ।
स्वेतारुणैः पुष्पदलैः पुष्पमन्दिरवर्तिभिः ॥ १० ॥
वसन्तमाधुर्यधराः कूजत्कोकिलसारसाः ।
पारावतैर्मयूरैश्च यत्र तत्र निकूजिताः ॥ ११ ॥
राधाकृष्णकथां पुण्यां गायमानैर्मधुव्रतैः ।
पतद्‌भिर्मधुमत्तैश्च कुंजाः सर्वे विराजिताः ॥ १२ ॥
पुलिने शीतलो वायुः मन्दगामी वहत्यलम् ।
सहस्रदलपद्मानां रजो विक्षेपयन्मुहुः ॥ १३ ॥

राजा बहुलाश्वने पूछा- देवर्षे ! श्रीराधाको और सुन्दरी दरियों (कन्दराओं) तथा भ्रमरियोंसे वह दर्शन दे, उसके प्रेमकी परीक्षा करके, भगवान् श्रीकृष्णने अपनी लीलाशक्तिके द्वारा आगे चलकर कौन-सी लीला प्रकट की ? ॥ १ ॥

श्रीनारदजीने कहा- राजन् ! माधव (वैशाख) मासमें माधवी लताओंसे व्याप्त वृन्दावनमें रासेश्वर माधवने स्वयं रासका आरम्भ किया। वैशाख मासकी कृष्णपक्षीया पञ्चमीको जब सुन्दर चन्द्रोदय हुआ, उस समय मनोहर श्यामसुन्दरने यमुनाके तटवर्ती उपवनमें रासेश्वरी श्रीराधाके साथ रास-विहार किया। मिथिलेश्वर ! इसके पूर्व गोलोकसे जिस भूमिका पृथ्वीपर अवतरण हो चुका था, वह सब की सब तत्काल सुवर्ण तथा पद्मरागमणिसे मण्डित हो गयी ॥ २-४

वृन्दावन भी दिव्यरूप धारण करके, कामपूरक कल्पवृक्षों तथा माधवी लताओंसे समलंकृत हो, अपनी शोभासे नन्दनवनको भी तिरस्कृत करने लगा। राजन् ! रत्नोंके सोपानों और सुवर्ण-निर्मित तोलिकाओं (गुमटियों) से मण्डित तथा हंसों और कमल आदिके पुष्पोंसे व्याप्त यमुना नदीकी अपूर्व शोभा हो रही थी ॥ ५-६

गिरिराज गोवर्धन गजराजके समान शोभा पाता था । जैसे गजराजके गण्डस्थलसे मदकी धाराएँ झरती हैं और उस पर भ्रमरोंकी भीड़ लगी रहती है, उसी प्रकार गिरिराजकी घाटियोंसे जलके निर्झर प्रवाहित होते थे और सुन्दरी दरियों (कंदराओं) तथा भ्रमरियों से पर्वत व्याप्त था । वहाँ विभिन्न धातुओंकी जगह नाना प्रकारके रत्न उद्भासित होते थे । उसके रत्नमय शिखरोंकी दिव्य दीप्ति सब ओर प्रकाशित हो रही थी । वह पक्षियोंके कलरवसे मुखरित तथा लता-पुष्पोंसे मनोहर जान पड़ता था ॥ ७-८

 गिरिराज के चारों ओर समस्त निकुञ्ज दिव्यरूप धारण करके सुशोभित होने लगे । सभा-मण्डपोंसे मण्डित वीथियाँ, प्राङ्गण और खंभोंकी पतियाँ उनकी शोभा बढ़ाने लगीं। नरेश्वर ! फहराती हुई दिव्य पताकाएँ, सुवर्णमय कलश तथा पुष्पमय मन्दिरोंमें विद्यमान श्वेतारुण पुष्पदल उन निकुञ्जको विभूषित कर रहे थे। उन सबमें वसन्त ऋतुकी माधुरी भरी थी । वहाँ कोकिल और सारस अपने मीठे बोल सुना रहे थे। जहाँ-तहाँ सब ओर कबूतर और मोर आदि पक्षी कलरव करते थे। श्रीराधा-कृष्णकी पुण्यमयी गाथाका गान करते हुए टूट पड़नेवाले मधुमत्त भ्रमरोंसे सभी कुञ्ज विशेष शोभा पाते थे । यमुना - पुलिनपर सहस्रदल कमलोंके पुष्प-पराग को बारंबार बिखेरता हुआ शीतल-मन्द-सुगन्ध समीर प्रवाहित हो रहा था ।। -१३ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌻🌿🌹🥀जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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