गुरुवार, 1 अगस्त 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-चौथा अध्याय..(पोस्ट ०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध-चौथा अध्याय..(पोस्ट०६)

राजाका सृष्टिविषयक प्रश्न और शुकदेवजी का कथारम्भ

यदङ्घ्र्यभिध्यानसमाधिधौतया
    धियानुपश्यन्ति हि तत्त्वमात्मनः ।
वदन्ति चैतत् कवयो यथारुचं
    स मे मुकुंदो भगवान् प्रसीदताम् ॥ २१ ॥
प्रचोदिता येन पुरा सरस्वती
    वितन्वताऽजस्य सतीं स्मृतिं हृदि ।
स्वलक्षणा प्रादुरभूत् किलास्यतः
    स मे ऋषीणां ऋषभः प्रसीदताम् ॥ २२ ॥
भूतैर्महद्‌भिर्य इमाः पुरो विभुः
    निर्माय शेते यदमूषु पूरुषः ।
भुङ्क्ते गुणान् षोडश षोडशात्मकः
    सोऽलङ्कृषीष्ट भगवान् वचांसि मे ॥ २३ ॥
नमस्तस्मै भगवते वासुदेवाय वेधसे ।
पपुर्ज्ञानमयं सौम्या यन्मुखाम्बुरुहासवम् ॥ २४ ॥
एतद् एवात्मभू राजन् नारदाय विपृच्छते ।
वेदगर्भोऽभ्यधात् साक्षाद् यदाह हरिरात्मनः ॥ २५ ॥

विद्वान् पुरुष जिनके चरणकमलोंके चिन्तनरूप समाधिसे शुद्ध हुई बुद्धिके द्वारा आत्मतत्त्वका साक्षात्कार करते हैं तथा उनके दर्शनके अनन्तर अपनी-अपनी मति और रुचिके अनुसार जिनके स्वरूपका वर्णन करते रहते हैं, वे प्रेम और मुक्तिके लुटानेवाले भगवान्‌ श्रीकृष्ण मुझपर प्रसन्न हों ॥ २१ ॥ जिन्होंने सृष्टिके समय ब्रह्माके हृदयमें पूर्वकल्पकी स्मृति जागरित करनेके लिये ज्ञानकी अधिष्ठात्री देवीको प्रेरित किया और वे अपने अङ्गोंके सहित वेदके रूपमें उनके मुखसे प्रकट हुर्ईं, वे ज्ञानके मूलकारण भगवान्‌ मुझपर कृपा करें, मेरे हृदयमें प्रकट हों ॥ २२ ॥ भगवान्‌ ही पञ्चमहाभूतोंसे इन शरीरोंका निर्माण करके इनमें जीवरूपसे शयन करते हैं और पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच प्राण और एक मन—इन सोलह कलाओंसे युक्त होकर इनके द्वारा सोलह विषयोंका भोग करते हैं। वे सर्वभूतमय भगवान्‌ मेरी वाणीको अपने गुणोंसे अलङ्कृत कर दें ॥ २३ ॥ संत पुरुष जिनके मुखकमलसे मकरन्दके समान झरती हुई ज्ञानमयी सुधाका पान करते रहते हैं उन वासुदेवावतार सर्वज्ञ भगवान्‌ व्यासके चरणोंमें मेरा बार-बार नमस्कार है ॥ २४ ॥
परीक्षित्‌ ! वेदगर्भ स्वयम्भू ब्रह्माने नारदके प्रश्न करनेपर यही बात कही थी, जिसका स्वयं भगवान्‌ नारायण ने उन्हें उपदेश किया था (और वही मैं तुमसे कह रहा हूँ) ॥ २५ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
द्वितीयस्कंधे चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    हे गोविंद !! हे गोपाल !!
    हे करुणामय दीन दयाल !!
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण 🌺💖🌹🥀🌼💐🙏🙏🙏🙏🙏

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