गुरुवार, 22 अगस्त 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा

अत्रेः अपत्यमभिकाङ्क्षत आह तुष्टो ।
    दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः ।
यत् पादपङ्कजपराग पवित्रदेहा ।
    योगर्द्धिमापुरुभयीं यदुहैहयाद्याः ॥ ४ ॥
तप्तं तपो विविधलोकसिसृक्षया मे ।
    आदौ सनात् स्वतपसः स चतुःसनोऽभूत् ।
प्राक्कल्प संप्लवविनष्टमिह आत्मतत्त्वं ।
    सम्यग् जगाद मुनयो यदचक्षतात्मन् ॥ ५ ॥
धर्मस्य दक्षदुहितर्यजनिष्ट मूर्त्यां ।
    नारायणो नर इति स्वतपः प्रभावः ।
दृष्ट्वात्मनो भगवतो नियमावलोपं ।
    देव्यस्त्वनङ्गपृतना घटितुं न शेकुः ॥ ६ ॥
कामं दहन्ति कृतिनो ननु रोषदृष्ट्या ।
    रोषं दहन्तमुत ते न दहन्त्यसह्यम् ।
सोऽयं यदन्तरमलं प्रविशन् बिभेति ।
    कामः कथं नु पुनरस्य मनः श्रयेत ॥ ७ ॥

महर्षि अत्रि भगवान्‌ को पुत्ररूप में प्राप्त करना चाहते थे। उनपर प्रसन्न होकर भगवान्‌ ने उनसे एक दिन कहा कि ‘मैंने अपने आपको तुम्हें दे दिया।’ इसीसे अवतार लेनेपर भगवान्‌ का नाम ‘दत्त’ (दत्तात्रेय) पड़ा। उनके चरणकमलोंके परागसे अपने शरीरको पवित्र करके राजा यदु और सहस्रार्जुन आदिने योगकी भोग और मोक्ष दोनों ही सिद्धियाँ प्राप्त कीं ॥ ४ ॥
नारद ! सृष्टिके प्रारम्भमें मैंने विविध लोकोंको रचनेकी इच्छासे तपस्या की। मेरे उस अखण्ड तपसे प्रसन्न होकर उन्होंने ‘तप’ अर्थवाले ‘सन’ नामसे युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमारके रूपमें अवतार ग्रहण किया। इस अवतारमें उन्होंने प्रलयके कारण पहले कल्पके भूले हुए आत्मज्ञानका ऋषियोंके प्रति यथावत् उपदेश किया, जिससे उन लोगोंने तत्काल परम तत्त्वका अपने हृदयमें साक्षात्कार कर लिया ॥ ५ ॥
धर्म की पत्नी दक्षकन्या मूर्ति के गर्भ से वे नर-नारायण के रूप में प्रकट हुए। उनकी तपस्या का प्रभाव उन्हीं के जैसा है। इन्द्र की भेजी हुई काम की सेना अप्सराएँ उनके सामने जाते ही अपना स्वभाव खो बैठीं। वे अपने हाव-भाव से उन आत्मस्वरूप भगवान्‌ की तपस्या में विघ्र नहीं डाल सकीं ॥ ६ ॥ नारद ! शङ्कर आदि महानुभाव अपनी रोषभरी दृष्टि से कामदेव को जला देते हैं, परंतु अपने आपको जलाने वाले असह्य क्रोध को वे नहीं जला पाते। वही क्रोध नर-नारायण के निर्मल हृदयमें प्रवेश करनेके पहले ही डरके मारे काँप जाता है। फिर भला, उनके हृदय में काम का प्रवेश तो हो ही कैसे सकता है ॥ ७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🥀🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏🌹 गोविंदाय नमो नमः

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