॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान् के लीलावतारों की कथा
त्रैविष्टपोरुभयहा स नृसिंहरूपं ।
कृत्वा भ्रमद् भ्रुकुटिदंष्ट्रकरालवक्त्रम् ।
दैत्येन्द्रमाशु गदयाऽभिपतन्तमारात् ।
ऊरौ निपात्य विददार नखैः स्फुरन्तम् ॥ १४ ॥
अन्तः सरस्युरुबलेन पदे गृहीतो ।
ग्राहेण यूथपतिरम्बुजहस्त आर्तः ।
आहेदमादिपुरुषाखिललोकनाथ ।
तीर्थश्रवः श्रवणमङ्गलनामधेय ॥ १५ ॥
श्रुत्वा हरिस्तमरणार्थिनमप्रमेयः ।
चक्रायुधः पतगराजभुजाधिरूढः ।
चक्रेण नक्रवदनं विनिपाद्य तस्माद् ।
धस्ते प्रगृह्य भगवान् कृपयोज्जहार ॥ १६ ॥
देवताओंका महान् भय मिटानेके लिये उन्होंने नृसिंहका रूप धारण किया। फडक़ती हुई भौंहों और तीखी दाढ़ोंसे उनका मुख बड़ा भयावना लगता था। हिरण्यकशिपु उन्हें देखते ही हाथमें गदा लेकर उनपर टूट पड़ा। इसपर भगवान् नृसिंहने दूरसे ही उसे पकडक़र अपनी जाँघोंपर डाल लिया और उसके छटपटाते रहनेपर भी अपने नखों से उसका पेट फाड़ डाला ॥ १४ ॥
बड़े भारी सरोवरमें महाबली ग्राह ने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया। जब बहुत थककर वह घबरा गया, तब उसने अपनी सूँड़ में कमल लेकर भगवान् को पुकारा—‘हे आदिपुरुष ! हे समस्त लोकों के स्वामी ! हे श्रवणमात्र से कल्याण करनेवाले !’ ॥ १५ ॥ उसकी पुकार सुनकर अनन्तशक्ति भगवान् चक्रपाणि गरुडकी पीठपर चढक़र वहाँ आये और अपने चक्रसे उन्होंने ग्राह का मस्तक उखाड़ डाला। इस प्रकार कृपापरवश भगवान् ने अपने शरणागत गजेन्द्र की सूँड़ पकडक़र उस विपत्तिसे उसका उद्धार किया ॥ १६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे नाथ नारायण अनंत कोटि ब्रह्माण्ड के स्वामी हे त्रिभुवन नाथ हे करुणामय शरणागत वत्सल
प्रभु श्री हरि: गोविंदपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: चरण वंदन 🙏🥀🙏🥀🙏