सोमवार, 26 अगस्त 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा

ज्यायान् गुणैरवरजोऽप्यदितेः सुतानां ।
    लोकान् विचक्रम इमान् यदथाधियज्ञः ।
क्ष्मां वामनेन जगृहे त्रिपदच्छलेन ।
    याच्ञामृते पथि चरन् प्रभुभिर्न चाल्यः ॥ १७ ॥
नार्थो बलेरयमुरुक्रमपादशौचम् ।
    आपः शिखाधृतवतो विबुधाधिपत्यम् ।
यो वै प्रतिश्रुतमृते न चिकीर्षदन्यद् ।
    आत्मानमङ्ग शिरसा हरयेऽभिमेने ॥ १८ ॥

भगवान्‌ वामन अदिति के पुत्रों में सबसे छोटे थे, परन्तु गुणों की दृष्टि से वे सबसे बड़े थे। क्योंकि यज्ञपुरुष भगवान्‌ ने इस अवतार में बलि के संकल्प छोड़ते ही सम्पूर्ण लोकोंको अपने चरणों से ही नाप लिया था। वामन बनकर उन्होंने तीन पग पृथ्वी के बहाने बलि से सारी पृथ्वी ले तो ली, परन्तु इससे यह बात सिद्ध कर दी कि सन्मार्ग पर चलनेवाले पुरुषों को याचना के सिवा और किसी उपाय से समर्थ पुरुष भी अपने स्थान से नहीं हटा सकते, ऐश्वर्य से च्युत नहीं कर सकते ॥ १७ ॥ दैत्यराज बलि ने अपने सिरपर स्वयं वामन भगवान्‌ का चरणामृत धारण किया था। ऐसी स्थिति में उन्हें जो देवताओं के राजा इन्द्रकी पदवी मिली, इसमें कोई बलि का पुरुषार्थ नहीं था। अपने गुरु शुक्राचार्य के मना करनेपर भी वे अपनी प्रतिज्ञा के विपरीत कुछ भी करने को तैयार नहीं हुए। और तो क्या, भगवान्‌ का तीसरा पग पूरा करने के लिये उनके चरणों में सिर रखकर उन्होंने अपने आपको भी समर्पित कर दिया ॥ १८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🌺🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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